नई दिल्ली : किसी काम पिपासु की वासना की शिकार बनी नाबालिग दस वर्षीय बालिका गर्भवती हो गई . उसका गर्भपात किये जाने की अनुमति दिए जाने की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जाँच के लिए गठित मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के आ धार पर खारिज कर दी, क्योंकि गर्भपात करना पीड़ित लड़की और उसके गर्भ के लिए उचित नहीं माना गया .
उल्लेखनीय है कि चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर और जस्टिस धनन्जय वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने पीजीआई, चंडीगढ़ द्वारा गठित मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट का संज्ञान लिया .बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर यह मेडिकल बोर्ड बलात्कार पीड़ित लड़की का परीक्षण करने और गर्भपात की अनुमति देने की स्थिति के नतीजों का अध्ययन कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए गठित किया गया था. बलात्कार पीड़ित की मेडिकल देखभाल से पीठ ने संतोष व्यक्त किया और गर्भपात की अनुमति के लिये दायर याचिका खारिज कर दी. इस मौके पर शीर्ष अदालत ने सॉलिसीटर जनरल रंजीत कुमार से बड़ी संख्या में इस तरह के मामले शीर्ष अदालत में आने पर तत्परता से निर्णय लेने हेतु प्रत्येक राज्य में एक स्थाई मेडिकल बोर्ड गठित करने के सुझाव पर विचार करने को कहा.
गौरतलब है कि चंडीगढ़ की जिला अदालत ने 18 जुलाई को इस बलात्कार पीड़िता को गर्भपात की इजाजत देने से इंकार करने पर वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने सुप्रीम कोर्ट में यह जनहित याचिका दायर की थी. बता दें कि कोर्ट चिकित्सीय गर्भ समापन कानून के तहत 20 हफ्ते तक के भ्रूण के गर्भपात की अनुमति देता है. लेकिन भ्रूण के अनुवांशिकी रूप से असमान्य होने की दशा में अपवाद स्वरूप भी आदेश दे सकता है.
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