धार: मध्य प्रदेश के धार जिले में ऐतिहासिक भोजशाला में सर्वेक्षण का काम चल रहा है। हैदराबाद से आई भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण की टीम ने प्रवेश द्वार के पास ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (GPR) मशीन से सर्वेक्षण किया। परिसर के उत्तरी हिस्से में एक जगह खुदाई भी की गई। इस दौरान जमीन में विशेष बनावट वाले खंभों के तीन अवशेष मिले हैं। तीनों टुकड़ों पर एक खास आकृति बनी हुई है।
जानकारी के अनुसार, सुबह 8 बजे टीम कैंटीन में दाखिल हुई। टीम ने GPR मशीन से 50 मीटर के दायरे में सर्वे किया। सर्वे की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी कराई जा रही है। वहीं, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की टीम ने चार दिन में किए गए GPR सर्वे की रिपोर्ट तैयार कर ली है, हालांकि फाइनल रिपोर्ट लैब में ही तैयार होगी। इसमें कुछ दिन और लग सकते हैं। इस मुख्य रिपोर्ट के आधार पर ही ASI की टीम भोजशाला में नए स्थानों पर खुदाई करने का फैसला करेगी। हिंदू पक्ष के गोपाल शर्मा ने बताया कि 29 मई को कैंटीन के भीतरी और बाहरी परिसर में काम हुआ। उत्तरी भाग में मिट्टी हटाने का काम हुआ है। गर्भगृह समेत अन्य मुख्य स्थानों की फोटोग्राफी की गई। खुदाई में 1500 छोटे-बड़े अवशेष, हिंदू देवी-देवताओं के प्रतीक चिह्न, बारीक नक्काशीदार पत्थर, दो स्तंभ आधार, तीन फुट लंबी तलवार और कुछ सिक्के मिले हैं।
इससे पहले इसी साल 11 मार्च को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने ASI को भोजशाला का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया था। यह सर्वेक्षण 27 जून तक चलेगा। 'हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस' ने करीब 1000 साल पुराने भोजशाला परिसर की वैज्ञानिक जांच, सर्वेक्षण, उत्खनन या ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार सर्वेक्षण की मांग की थी। हिंदू संगठनों ने कोर्ट में कहा था कि भोजशाला में सरस्वती माता का मंदिर है। अपने दावे को मजबूत करने के लिए हिंदू पक्ष ने हाई कोर्ट के सामने भोजशाला की रंगीन तस्वीरें भी पेश कीं।
ऐतिहासिक भोजशाला परिसर में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की जांच के 64वें दिन, साइट के उत्तरी और दक्षिणी हिस्सों में महत्वपूर्ण खोज की गई। सर्वेक्षण में उत्तरी भाग में खंभों के पत्थर के अवशेष और गर्भगृह में अतिरिक्त अवशेष मिले। महाराजा भोज सेवा समिति के सचिव और एक प्रमुख याचिकाकर्ता गोपाल शर्मा ने कहा कि इन अवशेषों पर आकृतियाँ और प्रतीक भोजशाला के मौजूदा खंभों से मिलते जुलते हैं। विशेषज्ञ अब इन कलाकृतियों की आयु और ऐतिहासिक महत्व की गणना कर रहे हैं।
परमार वंश, जो 10वीं से 13वीं शताब्दी तक मध्य भारत में शासन करता रहा, जिसकी राजधानी धार (अब मध्य प्रदेश) थी, कला और वास्तुकला में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध है। सबसे प्रसिद्ध शासक राजा भोज ने 11वीं शताब्दी में ज्ञान की देवी सरस्वती (वाग्देवी) को समर्पित एक मंदिर बनवाया था। यह मंदिर एक महत्वपूर्ण शिक्षा केंद्र बन गया, जो दूर-दूर के क्षेत्रों से तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता था। हालाँकि, मध्यकाल में इस्लामी आक्रमणों के दौरान इसे नुकसान पहुँचा था।
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