वाराणसी: 3 अगस्त को, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित ज्ञानवापी परिसर के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) सर्वेक्षण को जारी रखने की पुष्टि करते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था, जिसके बाद से अब तक 4 दिनों का सर्वे हो चुका है। मुस्लिम वादियों द्वारा दाखिल याचिका को झटका देते हुए अदालत ने वाराणसी अदालत द्वारा जारी आदेश पर रोक लगाने के उनके अनुरोध को खारिज कर दिया था। मौजूदा सर्वे में विवादित परिसर में खंडित मूर्तियों के अवशेष, त्रिशूल के चिन्ह और अन्य हिन्दू धर्म से संबंधित आकृतियां मिलने का दावा किया जा रहा है।
बता दें कि, बाबा काशी विश्वनाथ मंदिर और वाराणसी का ज्ञानवापी परिसर मामला तब फिर से सुर्खियों में आया था, जब दावा किया गया था कि मस्जिद के वजुखाने में एक 'शिवलिंग' मिला है। इस 'शिवलिंग' को मुस्लिम पक्ष 'फव्वारा' बता रहा है, लेकिन इसके साथ ही वह कार्बन डेटिंग का भी विरोध कर रहा है, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि, वो आकृति शिवलिंग है या फव्वारा ? इस तरह काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का 32 साल पुराना केस एक बार फिर चर्चाओं में आ गया, हालांकि इसका इतिहास 350 साल से भी अधिक पुराना है। इस बीच एक दुर्लभ तस्वीर सामने आई है, जिसे ज्ञानवापी परिसर के नीचे बने तहखाने की दीवार का हिस्सा बताया जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, ज्ञानवापी परिसर की यह दुर्लभ तस्वीर 155 साल पुरानी है, जो हिंदू पक्ष द्वारा किए जा रहे दावों के पीछे की सच्चाई बता रही है। वर्ष 1868 में ब्रिटिश फोटोग्राफर सैमुअल बॉर्न ने यह तस्वीर खींची थी। यह तस्वीर आज भी अमेरिका के ह्यूस्टन स्थित ‘द म्यूजियम ऑफ फाइन आर्ट्स में रखी हुई है।
तस्वीर से साफ पता चलता है कि उस दौर में ज्ञानवापी परिसर कैसा दिखता था। इस तस्वीर में ज्ञानवापी परिसर में मौजूद खंभों पर नंदी और भगवान हनुमान की मूर्तियों के साथ हिंदू कलाकृतियां और घंटियां नजर आ रही हैं। इस नए विकास से यह स्पष्ट हो गया है कि भगवान शिव के 11वें रुद्रावतार भगवान हनुमान भी ज्ञानवापी परिसर में विराजमान हैं। इसलिए, यह तस्वीर हिंदू पक्ष के दावों की पुष्टि करती है कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में हिंदू प्रतीक और देवी-देवताओं की मूर्तियां मौजूद हैं। इससे पहले हिंदू पक्ष ने मां श्रृंगार गौरी की मौजूदगी का सबूत देते हुए यहां पूरे साल मां श्रृंगार की पूजा की मांग की थी। यह केस भी अभी कोर्ट में लंबित है।
रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिटिश फोटोग्राफर सैमुअल बार्न वर्ष 1868 में बनारस यात्रा पर भारत आए थे। यह तस्वीर आज से 155 वर्ष पूर्व ज्ञानवापी की सच्चाई दिखलाती है। इन तस्वीरों में 3 अलंकृत नक्काशीदार स्तंभ अग्रभूमि में, एक खोदी गई मेहराब के नीचे और एक नक्काशीदार प्रतिमा के सामने खड़े हैं। वहीं एक अन्य तस्वीर में अलंकृत रूप से सजाई गई प्रतिमा दो स्तंभों के बीच नज़र आ रही है और तस्वीर में दिख रहा है कि मूर्ति के ठीक ऊपर घंटी लटकी हुई है।
बता दें कि संग्राहलय में सैमुअल बार्न के भारत दौरे के दौरान खींचे गए तस्वीर और नीलामी से प्राप्त की गईं 150 से ज्यादा तस्वीर प्रदर्शित की गई है। इन तस्वीरों में बनारस के घाट, आलमगिरी मस्जिद समेत कई मंदिरों और ज्ञानवापी के अंदर तथा बाहर बैठे नंदी की अनेक तस्वीरें मौजूद हैं।
पहले श्री गणेश और अब भगवान परशुराम का अपमान..! केरल की वामपंथी सरकार पर हमलावर हुई भाजपा