30 लाख बंगालियों की हत्या, 2 लाख महिलाओं का बलात्कार..! आज उसी पाकिस्तान को दोस्त मान रहा बांग्लादेश

30 लाख बंगालियों की हत्या, 2 लाख महिलाओं का बलात्कार..! आज उसी पाकिस्तान को दोस्त मान रहा बांग्लादेश
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ढाका: 16 दिसंबर, 1971, एक ऐतिहासिक दिन था जब पाकिस्तान की सेना ने भारतीय सेना के सामने सरेंडर किया और एक नए राष्ट्र बांग्लादेश का जन्म हुआ। यह दिन न केवल बांग्लादेश के लिए, बल्कि भारत और पाकिस्तान के लिए भी एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ। शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में पूर्वी पाकिस्तान ने पाकिस्तान के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ी, जिसमें भारत ने खुलकर बांग्लादेश का समर्थन किया। भारतीय सेना ने इस युद्ध में अद्भुत साहस और कुशल रणनीति का परिचय देते हुए पाकिस्तान को हराया और बांग्लादेश के अस्तित्व को सुनिश्चित किया।  

बांग्लादेश के जन्म के लिए इसकी जनता को भारी कीमत चुकानी पड़ी। 25 मार्च से 16 दिसंबर 1971 के बीच हुए इस संघर्ष में पाकिस्तानी सेना ने बर्बरता की सारी हदें पार कर दीं। ढाका के लिबरेशन वॉर म्यूजियम के आंकड़ों के अनुसार, इस युद्ध के दौरान लगभग 30 लाख बंगालियों की हत्या हुई और 2 लाख से अधिक महिलाओं का सामूहिक बलात्कार किया गया। इस भयावह हिंसा को आधुनिक इतिहास में सामूहिक बलात्कार के सबसे बड़े मामलों में से एक माना जाता है।  

मानवविज्ञानी नयनिका मुखर्जी का कहना है कि युद्ध के दौरान रेप को एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया। यह दुश्मन समुदाय के सम्मान को आघात पहुंचाने और उनकी इच्छाशक्ति को तोड़ने का एक कुटिल प्रयास था। महिलाओं को उनकी गरिमा और सम्मान से वंचित किया गया, और इस अत्याचार के कारण बांग्लादेश का स्वतंत्रता संग्राम एक गहरे दर्द की दास्तां बन गया।  

1947 में भारत के विभाजन के दौरान बंगाल भी पूर्वी और पश्चिमी भागों में विभाजित हो गया। पश्चिम बंगाल भारत में रहा, जबकि पूर्वी बंगाल, जिसे बाद में पूर्वी पाकिस्तान कहा गया, पाकिस्तान का हिस्सा बन गया। भाषाई, सांस्कृतिक और राजनीतिक मतभेदों के कारण पूर्वी पाकिस्तान ने पश्चिमी पाकिस्तान के प्रभुत्व को अस्वीकार करते हुए स्वतंत्रता की मांग की। 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान, लगभग एक करोड़ बांग्लादेशी शरणार्थी भारत आए, जिनमें से अधिकांश ने पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और असम में शरण ली। हालांकि, यह पहली बार नहीं था जब बड़ी संख्या में बांग्लादेशी भारत आए थे। 1947, 1964 और 1965 में भी भारत ने इन शरणार्थियों को शरण दी थी।  

आज, 1971 के इस युद्ध को 53 साल हो चुके हैं। लेकिन यह विडंबना है कि जिस बांग्लादेश को भारत ने बचाया, वह आज इस्लामी कट्टरपंथ की आग में जल रहा है। बांग्लादेश, जो कभी पाकिस्तानी सेना की बर्बरता का शिकार था, आज उसी पाकिस्तान को अपना दोस्त समझता है। वहीं, भारत, जिसने उसके संघर्ष में साथ दिया और लाखों शरणार्थियों को सहारा दिया, आज बांग्लादेश की नजर में दुश्मन बन गया है। इसका कारण सिर्फ इतना है कि भारत एक हिंदू बहुल देश है।  

16 दिसंबर का यह दिन न केवल बांग्लादेश की आजादी का प्रतीक है, बल्कि यह याद दिलाता है कि धार्मिक कट्टरता और नफरत का अंजाम कितना भयावह हो सकता है। बांग्लादेश का वर्तमान रुख इस बात का सबूत है कि इतिहास के सबक को भुला देना कितना खतरनाक हो सकता है।  

 

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