मुंबई के पृथ्वी शॉ 17 साल 320 दिन में दलीप ट्रॉफी में सैकड़ा बनाने वाले सचिन तेंदुलकर के बाद दूसरे सबसे युवा खिलाड़ी बन गए. सचिन तेंदुलकर ने 17 साल 262 दिन की उम्र में यह उपलब्धि हासिल की थी. पृथ्वी ने ओपनिंग बैट्समैन के रूप में 249 गेंदों का सामना करते हुए 18 चौके और एक छक्के की मदद से 154 रन की शतकीय पारी खेली. पृथ्वी की सफलता के पीछे उनके पिता पंकज शॉ का सबसे बड़ा योगदान है. पंकज कहते हैं कि मेरा कोई क्रिकेट बैकग्राउंड नहीं है. मेरा काम तो केवल बेटे को ग्राउंड तक छोड़ने और लाने भर का रहा है. मैं तो सहयोग के लिए मुंबई में क्रिकेट सुविधाओं का आभारी हूँ. पृथ्वी के कोच विनोद राघवन और राहुल द्रविड का शुक्रगुजार हूं, जिन्होंने पृथ्वी को संवारा. उनके अनुसार पृथ्वी अपना करियर टीम इंडिया में बतौर ओपनर देखते हैं.
पिता चलाते थे विरार में कपड़े की दुकान- पृथ्वी के पिता पंकज शॉ की मुंबई से लगे विरार में रेडीमेट गारमेंट की छोटी सी दुकान थी. ये पृथ्वी के प्रैक्टिस ग्राउंड बांद्रा से कोई 70 किलोमीटर की दूरी पर थी. जब बच्चे क, ख, ग, घ सीख रहे थे, तब पृथ्वी बैटिंग के गुर सीख रहे थे. मात्र नौ साल की उम्र में पृथ्वी ने विपक्षी टीम के खिलाफ 73 रन की पारी खेल डाली थी. जब पृथ्वी मात्र तीन साल के थे, तब विरार में लोकल क्रिकेट कोच ने उनकी प्रतिभा को पहचाना. पंकज ने पृथ्वी को स्थानीय क्रिकेट एकेडमी में डाल दिया.
मां का अस्थमा से निधन, पिता ने ही संभाला- चार साल की उम्र में पृथ्वी की मां का अस्थमा के कारण निधन हो गया. अब सब कुछ करने की जिम्मेदारी पिता पंकज के ऊपर आ गई थी. पंकज ने साल 2006 में बिजनेस को बंद किया और पूरी तरह पृथ्वी के क्रिकेट करियर में जुट गए. पंकज कहते हैं कि मेरे लिए बिजनेस और पृथ्वी की जिम्मेदारी एक साथ संभालना मुश्किल हो रहा था. शुरुआत में आर्थिक परेशानी आई, पर मैं रुका नहीं. पृथ्वी के बेहतर भविष्य के लिए पंकज ने पृथ्वी को रिजवी स्प्रिंगफील्ड और एमआईजी क्लब बांद्रा में कोचिंग के लिए डाल दिया.
आसान नहीं थी सुबह 4.30 से शाम 6.09 बजे की जिंदगी- पिता पंकज कहते हैं कि विरार से बांद्रा कोचिंग के लिए जाने का मतलब था, सुबह 4.30 बजे जिंदगी की शुरुआत और शाम को 6.09 बजे विरार लोकल पकड़ना. लोकल ट्रेन की जद्दोजहद, पृथ्वी का स्कूल टाइम और शाम को प्रैक्टिस के बीच तालमेल कोई आसान काम नहीं था. हालांकि, 2009 में स्थितियां कुछ आसान हुईं, जब हम सांताक्रूज में रहने लगे. वहां रहने की व्यवस्था स्थानीय विधायक संजय पोटनीस ने की थी.
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