चेन्नई: सिलसिलेवार बम विस्फोट की घटना को "नृशंस" बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 4 अक्टूबर को 1998 के कोयंबटूर सिलसिलेवार बम विस्फोट मामले के कुछ दोषियों को जमानत देने से इनकार कर दिया, जिन्होंने राहत पाने के लिए अपनी अपील के लंबे समय तक लंबित होने का हवाला दिया था। बता दें कि, 14 से 17 फरवरी, 1998 के बीच तमिलनाडु के कोयम्बटूर शहर में 19 बम विस्फोट हुए थे, जिसमे 58 लोग मारे गए थे और 250 से अधिक घायल हो गए थे।
इस आतंकी हमले में, अलग-अलग समय पर फिक्स करते हुए इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (IED) को कारों, दोपहिया वाहनों, छोड़े गए बैग, पुश कार्ट, चाय के डिब्बे आदि में रखा गया था। इस्लामी आतंकवादी संगठन अल-उम्मा के नेता एसए बाशा और मोहम्मद अंसारी इस मामले में मुख्य दोषी थे। यह सिलसिलेवार विस्फोट तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी और अन्य की निर्धारित सार्वजनिक बैठक से ठीक पहले हुए थे। मामले के 166 आरोपियों में से निचली अदालत ने अगस्त 2007 में 69 लोगों को विभिन्न अपराधों के लिए दोषी ठहराया था। दिसंबर 2009 में, मद्रास उच्च न्यायालय ने विस्फोट मामले में 18 लोगों की दोषसिद्धि, 17 को आजीवन कारावास और एक दोषी की 13 साल की सजा को बरकरार रखा था। पीठ ने पर्याप्त सबूत के अभाव में 22 लोगों को सभी आरोपों से बरी कर दिया था। आजीवन कारावास की सज़ा पाने वाले अधिकांश दोषियों ने अपील में सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
दोषी मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटा रहे थे, जिसमें उनकी दोषसिद्धि और सजा को फरवरी 2024 के पहले सप्ताह के लिए सूचीबद्ध किया गया था। शुरुआत में, दोषियों की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील और कांग्रेस के दिग्गज नेता सलमान खुर्शीद ने कहा कि, 'हम (दोषी) अंदर हैं। पिछले 25 वर्षों से हिरासत में।” इस पर जस्टिस संजय किशन कौल ने पूछा कि, "कितने लोग मरे थे?" जमानत का विरोध करते हुए वरिष्ठ वकील वी गिरी ने जवाब दिया कि, "58 लोग मारे गए थे।'' इस पर जस्टिस कौल ने पुछा कि, 'उन्हें (दोषियों को) उस चीज़ के लिए दोषी ठहराया गया है, जिसमें 58 लोग मारे गए हैं। क्या सज़ा दी गई है?'
वहीं, मामले की सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने बताया कि 'उम्रकैद की सजा, 24 विस्फोट ऑपरेशन और 250 लोग घायल हुए और 58 के जान गंवाने के अलावा, उन्होंने (दोषियों ने) शहर के साथ जो किया वह अक्षम्य है। जमानत का सवाल ही नहीं उठता। हम सभी इस बात पर एकमत हैं कि जमानत नहीं दी जा सकती, आप 25 साल तक अंदर रह सकते हैं, लेकिन इस घटना में 58 लोग मारे गए थे, वे वापस जिन्दा नहीं हो सकते।' कोर्ट ने कहा कि, यह आपके लिए अंदर रहने का एक अच्छा कारण है। अपराध की प्रकृति एक महत्वपूर्ण कारक है (जमानत देने में)। जमानत याचिकाएं खारिज की जाती हैं। न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि, 'देखिए आपने क्या किया है…। अपराध की प्रकृति एक महत्वपूर्ण कारक है। जमानत अर्जी खारिज की जाती है। इसे फरवरी के पहले सप्ताह में मामले को नियमित बोर्ड में सूचीबद्ध किया जाए। प्रत्येक मामले को व्यक्तिगत रूप से उठाया जाना चाहिए, और तदनुसार सजा दी जानी चाहिए।'
बता दें कि, मुस्लिम संगठनों, वीसीके, द्रविड़ कड़गम, AIADMK, DMK जैसे राजनीतिक दलों, वामपंथी गुटों और सीमान के नेतृत्व वाले नाम तमिझार काची जैसे सीमांत दल लगातार मुस्लिम दोषियों की रिहाई की मांग कर रहे हैं।हालांकि, बम धमाकों में अपने प्रियजनों को खोने वाले परिवार इन दोषियों की जल्द रिहाई का कड़ा विरोध कर रहे हैं। मुस्लिम दोषियों की शीघ्र रिहाई के लिए इस साल मई में राज्य विधानसभा में पापनासम विधायक और मनिथानेया मक्कल काची नेता प्रोफेसर एमएच जवाहिरुल्ला के अनुरोध के जवाब में, राज्य के कानून मंत्री एस रेगुपति ने कहा था कि 15 मुस्लिम आजीवन कारावास के दोषियों को सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय न्यायाधीश आदिनाथन के नेतृत्व वाले एक पैनल की सिफारिश पर माफी योजना से लाभ हो सकता है। इससे पहले , तमिलनाडु की AIADMK सरकार ने भी इन दोषियों को जल्द रिहा करने का प्रयास किया था, लेकिन उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा था और राज्यपाल से मंजूरी हासिल करने में विफल रही थी। आजीवन कारावास की सजा पाने वालों में एनएस अब्दुल हकीम भी थे, जो 45 वर्ष के थे और पिछले महीने ब्रेन ट्यूमर के कारण उनका इंतकाल हो गया। इनमें एसए बाशा (82) और थाजुद्दीन (60) जैसे व्यक्ति भी हैं, जिन्हें दो दशक पहले कोयंबटूर में हुए श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था।