अलीगढ़: उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के दाऊदपुर कोटा गाँव से आई खबर ने देशभर का ध्यान खींचा है। इस मुस्लिम बहुल गाँव में केवल 20 दलित परिवार रहते हैं, जो अब अपने घरों पर "मकान बिकाऊ है" के पोस्टर लगाकर गाँव छोड़ने की तैयारी में हैं। इन दलित परिवारों का आरोप है कि उन्हें लगातार प्रताड़ित किया जा रहा है। मुस्लिम समुदाय के लोग उनके सामाजिक और धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप कर रहे हैं। गाँव में छोटी-छोटी बातों पर हिंसा हो रही है, जिससे उनकी जिंदगी दूभर हो गई है।
दाऊदपुर कोटा गाँव में लगभग 400 मुस्लिम परिवारों के बीच 20 दलित परिवार रहते हैं। इन दलित परिवारों का कहना है कि उन्हें गाँव में हर स्तर पर दबाया जा रहा है। बच्चों को स्कूल में परेशान किया जाता है, बहन-बेटियों के साथ छेड़खानी की घटनाएँ आम हो गई हैं, और शादी-ब्याह जैसे आयोजनों में भी व्यवधान डाला जाता है। कथित तौर पर कई बार उन्हें धर्मान्तरण के लिए भी मजबूर किया जाता है। उन्हें हाल ही में, एक शादी के दौरान डीजे बजाने को लेकर विवाद हुआ, जिसमें बारातियों पर हमला कर दिया गया। ग्रामीण जयंती देवी का आरोप है कि उनके घर में एक मुस्लिम महिला की बकरी घुस गई और उनका आटा और दूध खराब कर दिया। जब उन्होंने इसका विरोध किया, तो उस महिला और उसके पति ने उनके साथ मारपीट की। यह अकेला मामला नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि मुस्लिम समुदाय के दबंग लोग उन्हें निशाना बनाते हैं और पुलिस को पैसे खिलाकर मामलों को दबा देते हैं।
दलित परिवारों का कहना है कि उन्होंने कई बार पुलिस से शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। हाल ही में जब इन परिवारों ने "मकान बिकाऊ है" के पोस्टर अपने घरों पर लगाए, तो पुलिस ने इन्हें हटा दिया। थाना जवाँ प्रभारी हेमंत मावी ने बताया कि मारपीट के मामले में दो आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन इससे हालात में कोई बदलाव नहीं आया।
मीम-भीम एकता का झूठा नैरेटिव ...।
यह सवाल स्वाभाविक रूप से उठता है कि 400 मुस्लिम परिवारों के बीच 20 दलित परिवार शांति से क्यों नहीं रह पाए? जबकि हिन्दु बहुल इलाकों में मुस्लिमों को कोई समस्या नहीं होती। असदुद्दीन ओवैसी, अखिलेश यादव, और राहुल गांधी जैसे नेता अक्सर मीम-भीम भाईचारे का नैरेटिव फैलाने की कोशिश करते नज़र आते हैं। वे दावा करते हैं कि दलित और मुस्लिम समुदायों के बीच एक स्वाभाविक एकता है। लेकिन अलीगढ़ की घटना इस कथित एकता की पोल खोलती है।
हालाँकि, यह पहली बार नहीं है जब दलितों को मुस्लिम समुदाय के हाथों प्रताड़ित होने का सामना करना पड़ा है। 1947 में भी दलित नेता जोगेंद्रनाथ मंडल ने दलित-मुस्लिम एकता के नाम पर पाकिस्तान बनाने का समर्थन किया था, उनके पीछे लाखों दलित, मुस्लिमों पर भरोसा करके पाकिस्तान चले गए, इस विश्वास के साथ कि वहां उन्हें ज्यादा अधिकार मिलेंगे। मंडल पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री बने, लेकिन वहाँ के इस्लामी कट्टरपंथ ने दलितों को कभी स्वीकार नहीं किया। पाकिस्तान में दलित महिलाओं का बलात्कार हुआ, पुरुषों की हत्या हुई, और उनकी संपत्ति छीन ली गई। अंततः जोगेंद्रनाथ मंडल जान बचाकर भारत भाग आए, लेकिन अपने पीछे गए लाखों दलितों को मरने के लिए छोड़ आए।
यही नहीं, भारत में भी जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने से पहले दलितों को वोट देने का अधिकार तक नहीं था। उन्हें केवल मैला उठाने की नौकरियों तक सीमित रखा गया। कश्मीर में बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय ने कभी भी दलितों को समान अधिकार नहीं दिए। इसी तरह, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जामिया मिल्लिया इस्लामिया जैसे इस्लामी संस्थानों में दलितों के लिए आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। फिर भी, तथाकथित सेक्युलर नेता मीम-भीम एकता का झूठा राग आलापते रहते हैं। इनमे से एक भी नेता उस दलित परिवार से मिलने नहीं जाता, जो मुस्लिमों द्वारा प्रताड़ित किया गया हो, बाकी जगह ये कर्फ्यू होने पर भी जाने की जिद पकड़े रहते हैं। मौजूदा मामला यूपी का ही है, लेकिन संभल में पत्थरबाजों से जेल में मिलने जाने वाले समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता, अलीगढ़ में इन दलितों से मिलने नहीं जाएंगे। कारण स्पष्ट है, वे अपने मुस्लिम वोट बैंक को नहीं खोना चाहते।
क्यों दिया जाता है मीम-भीम का नारा ?
बिहार के फुलवारी शरीफ से बरामद कट्टरपंथी इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के दस्तावेज़ों ने इस साजिश का खुलासा किया था कि 2047 तक भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाने के लिए हिन्दुओं में किस तरह फूट डालनी है। इसमें SC/ST समुदाय को इस्लामिक एजेंडे के तहत अपने साथ मिलाने की बात कही गई थी। लेकिन इसका उद्देश्य केवल सत्ता प्राप्त करना था। सत्ता हासिल होने के बाद इस्लामी कट्टरपंथियों का व्यवहार क्या होगा, इसका अंदाजा पाकिस्तान और बांग्लादेश में दलितों की स्थिति से लगाया जा सकता है।
अलीगढ़ के दाऊदपुर कोटा गाँव की घटना एक बार फिर साबित करती है कि दलित-मुस्लिम एकता का नारा केवल एक राजनीतिक छलावा है। यह केवल वोट बैंक की राजनीति के लिए गढ़ा गया नैरेटिव है, जिसका उद्देश्य दलितों का इस्तेमाल करना है। आज अलीगढ़ में दलित परिवारों का पलायन एक गंभीर चेतावनी है। यह न केवल प्रशासन और सरकार के लिए, बल्कि उन नेताओं के लिए भी सवाल खड़े करता है, जो मीम-भीम भाईचारे का झूठा प्रचार करते हैं। भारत के दलितों को यह समझने की जरूरत है कि उनकी सुरक्षा और सम्मान तभी संभव है जब वे ऐसे राजनीतिक छलावों से दूर रहेंगे और अपनी शक्ति को पहचानेंगे।
अलीगढ़ की यह घटना इस बात का स्पष्ट उदाहरण है कि वोट बैंक की राजनीति और कट्टरपंथी सोच के चलते समाज को किस हद तक बाँटा जा रहा है। दलितों को इस सच्चाई को समझने और अपनी स्वतंत्रता और सम्मान के लिए एकजुट होने की आवश्यकता है।