श्रीनगर: केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेंस (NC) के नेता उमर अब्दुल्ला ने आज गुरुवार (2 जनवरी) को यह घोषणा की है कि राज्य सरकार उपभोक्ताओं को 200 यूनिट मुफ्त बिजली तभी प्रदान कर पाएगी, जब मीटर लगाए जाएंगे। यह योजना मार्च-अप्रैल 2025 से शुरू होने की उम्मीद है।
अब्दुल्ला ने यह भी बताया कि राज्य में बिजली की खपत आपूर्ति से अधिक है, और जम्मू-कश्मीर का तकनीकी और वाणिज्यिक घाटा पहले से ही लगभग 50 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। उनका कहना था कि भविष्य में क्षेत्र में चल रही बिजली परियोजनाओं के पूरा होने के बाद बिजली आपूर्ति में वृद्धि की जा सकती है। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब उमर अब्दुल्ला ने विधानसभा चुनाव के दौरान 200 यूनिट मुफ्त बिजली देने का वादा किया था, क्या उन्हें यह नहीं पता था कि राज्य के अधिकांश घरों में मीटर ही नहीं हैं? अगर मीटर नहीं हैं तो वे मुफ्त बिजली कैसे देंगे?
अब, मुख्यमंत्री बनने के दो महीने बाद, वे मीटर लगाने की बात कर रहे हैं। क्या चुनाव के समय इन सारी बातें याद नहीं आईं? राजनेताओं का यह रुझान अक्सर देखने को मिलता है कि वे चुनावी वादे तो बड़े-बड़े करते हैं, लेकिन असल में यह तब ही स्पष्ट होता है कि वो वादे वास्तविकता में कितना लागू हो सकते हैं। क्या यह स्थिति इसलिए उत्पन्न नहीं हुई क्योंकि चुनावी दौर में लोगों को आकर्षित करने के लिए ऐसे वादे किए गए, बिना यह सोचे कि उस वादे को पूरा कैसे किया जाएगा? यह सवाल तो हर चुनाव के बाद उठता है, कि क्या नेताओं को अपनी जिम्मेदारियां निभाने के लिए पहले से पूरी जानकारी नहीं होती?
इसके अलावा मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने शासन के हाइब्रिड मॉडल पर भी बात की। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में शासन का "हाइब्रिड मॉडल" किसी के लिए भी फायदेमंद नहीं है। उनका कहना था कि जब सत्ता का एक ही केंद्र होता है, तो तंत्र बेहतर तरीके से काम करता है। उनका यह बयान केंद्र शासित प्रदेश होने के कारण जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल के पास शासन से जुड़ी कई संवैधानिक शक्तियां होने के संदर्भ में था। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि केंद्र शासित प्रदेश के मामले में यह "हाइब्रिड मॉडल" सही नहीं है, और पूरी सत्ता एक ही स्थान पर हो तो प्रशासन और शासन में सुधार लाना संभव होता है।