भारत के सामने 275 रन का चुनौतीपूर्ण लक्ष्य था और उसके दोनों धुरंधर सलामी बल्लेबाज सातवें ओवर तक पवेलियन लौट चुके थे. ऐसे में निभाई जाती हैं दो महत्वपूर्ण साझेदारियां जिनके दम पर आज से ठीक नौ साल पहले भारत दूसरी बार विश्व चैंपियन बनने में सफल रहा था. वह दो अप्रैल 2011 का दिन था. स्थान था मुंबई का वानखेड़े स्टेडियम और भारत के सामने खिताबी मुकाबले में खड़ा था श्रीलंका जो टास जीतकर पहले बल्लेबाजी करते हुए छह विकेट पर 274 रन का स्कोर बनाता है.
जानकारी के लिए हम बता दें कि महेला जयवर्धने नाबाद 103 रन की शानदार पारी खेलते हैं. मतलब भारत को अगर 1983 के बाद फिर से चैंपियन बनना है तो उसे विश्व कप फाइनल में सबसे बड़ा लक्ष्य हासिल करने का रिकॉर्ड बनाना होगा. लेकिन यह क्या? वीरेंद्र सहवाग पारी की दूसरी गेंद पर पवेलियन लौट जाते हैं.
लसिथ मलिंगा इसके बाद सचिन तेंदुलकर को भी विकेट के पीछे कैच करवा देते हैं. भारत का स्कोर हो जाता है दो विकेट पर 31 रन. गौतम गंभीर (97) ने एक छोर संभाले रखा. वह विराट कोहली (35) के साथ 15.3 ओवर में 83 रन की साझेदारी निभाते हैं और फिर कप्तान महेंद्र सिंह धोनी (नाबाद 91) के साथ चौथे विकेट के लिए 19.4 ओवर में 109 रन जोड़ते हैं. इन दोनों साझेदारियों की विशेषता यह थी इनमें भारतीय बल्लेबाजों ने लंबे शॉट खेलने के बजाय विकेटों के बीच दौड़ लगाकर अधिक रन बटोरे थे.
गंभीर और कोहली की साझेदारी में केवल आठ चौके लगे थे. गंभीर और धोनी की साझेदारी में भी आठ बार ही गेंद सीमा रेखा के पार गई थी, लेकिन तब भी उन्होंने 5.54 के रन रेट से रन बनाए थे. आखिर में धोनी का नुवान कुलशेखरा पर लगाया गया छक्का भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के जेहन में रच बस गया. इस छक्के से भारत विश्व कप फाइनल में लक्ष्य का पीछा करते हुए जीत दर्ज करने वाली तीसरी टीम बन गई थी.
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