21 सितंबर को है गजलक्ष्मी व्रत, खरीदेंगे सोना तो बढ़ेगा आठ गुना

21 सितंबर को है गजलक्ष्मी व्रत, खरीदेंगे सोना तो बढ़ेगा आठ गुना
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कहा जाता है महागजलक्ष्मी व्रत बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. ऐसे में इस दिन हाथी पूजन करते हैं और इस दिन खरीदा सोना 8 गुना बढ़ जाता है. ऐसे में इस बार गजलक्ष्मी व्रत 21 सितंबर को है. जी दरअसल श्राद्ध पक्ष की अष्टमी पर यह त्यौहार मनाया जाता है और महालक्ष्मी उत्सव दिवाली से ज्यादा महत्व वाला होता है. कहते हैं श्राद्ध की अष्टमी पर महालक्ष्मी पूजा का महत्व अधिक होता है और शादी की खरीदी के लिए यह दिन शुभ पितृ पक्ष का दिन कहलाता है.

वैसे तो श्राद्ध पक्ष में शुभ कार्य वर्जित होते हैं और नई वस्तुएं खरीदना, नए परिधान पहनना भी निषेध होता है, लेकिन इन 16 कड़वे दिनों में अष्टमी का दिन विशेष रूप से शुभ माना गया है. जी हाँ, श्राद्ध पक्ष में आने वाली अष्टमी को लक्ष्मी जी का वरदान प्राप्त है और यह दिन विशेष इसलिए भी है कि इस दिन सोना खरीदने का महत्व है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन खरीदा सोना आठ गुना बढ़ता है और इसी के साथ ही शादी की खरीदारी के लिए भी यह दिन उपयुक्त होता है. कहा जाता है इस दिन हाथी पर सवार मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है. 

आइए बताते हैं इस पूजा की विधि- इसके लिए शाम के समय स्नान कर घर के देवालय में एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर केसर मिले चन्दन से अष्टदल बनाकर उस पर चावल रख जल कलश रखें. इसके बाद उस कलश के पास हल्दी से कमल बनाकर उस पर माता लक्ष्मी की मूर्ति प्रतिष्ठित करें और मिट्टी का हाथी बाजार से लाकर या घर में बना कर उसे स्वर्णाभूषणों से सजाएं. इसके बाद नया खरीदा सोना हाथी पर रख दें और पूजा करें इससे विशेष लाभ मिलता है. इसी के साथ आप आपकी श्रद्धानुसार चांदी या सोने का हाथी भी ला सकते हैं. कहते हैं चांदी के हाथी का कई गुना अधिक महत्व है और संभव हो तो चांदी का हाथी अवश्य खरीदें. इसी के साथ माता लक्ष्मी की मूर्ति के सामने श्रीयंत्र भी रखें और कमल के फूल से पूजन करें. इसके बाद सोने-चांदी के सिक्के, मिठाई, फल भी रखें और इसके बाद माता लक्ष्मी के आठ रूपों की इन मंत्रों के साथ कुंकुम, अक्षत और फूल चढ़ाते हुए पूजा करें-

- ॐ आद्यलक्ष्म्यै नम:

- ॐ विद्यालक्ष्म्यै नम:

- ॐ सौभाग्यलक्ष्म्यै नम:

- ॐ अमृतलक्ष्म्यै नम:

- ॐ कामलक्ष्म्यै नम:

- ॐ सत्यलक्ष्म्यै नम:

- ॐ भोगलक्ष्म्यै नम:

- ॐ योगलक्ष्म्यै नम:

- अंत में धूप और घी के दीप से पूजा कर नैवेद्य या भोग लगाएं और महालक्ष्मी जी की आरती करें.

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