श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने एक दशक पहले बंद हो चुके नदीमर्ग नरसंहार मामले में जम्मू-कश्मीर पुलिस की पुनरीक्षण याचिका को स्वीकृति दे दी है। इस मंजूरी का मतलब है कि नदीमर्ग नरसंहार मामले की फाइल एक बार फिर से खोली जाएगी। शनिवार (29 अक्टूबर 2022) को हुई सुनवाई में न्यायमूर्ति विनोद चटर्जी कौल ने लोअर कोर्ट को आदेश देते हुए कहा है कि वह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से (कमीशन जारी करके या रिकॉर्ड करके) गवाहों के बयान लेने और उसकी जाँच सुनिश्चित करने के लिए सभी जरूरी उपाय करें। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत को यह भी कहा है कि नदीमर्ग नरसंहार मामले की जल्द से जल्द सुनवाई करें, ताकि इस मामले को शीघ्र खत्म किया जा सके।
दरअसल, सेना के भेष में आए इस्लामी आतंकियों ने 24 निर्दोष कश्मीरी हिन्दुओं को कतार में खड़ा कर गोलियों से भून डाला था। इस संबंध में केस दर्ज कर जांच शुरू की गई थी। लेकिन, गवाहों ने दहशत के चलते घाटी से पलायन कर दिया था, जिसके बाद मुक़दमे का ट्रायल रुक गया था। लेकिन अब लगभग 19 साल बाद अब हाई कोर्ट ने इस मामले को फिर खोलने के आदेश जारी किए हैं। बता दें कि 23 मार्च 2003 को जिस समय ये नरसंहार हुआ था, उस वक़्त भारत और पाकिस्तान के बीच एक रोजा क्रिकेट मैच खेला जा रहा था। पूरा देश क्रिकेट मैच देखने के व्यस्त था। इसी दौरान इस्लामी आतंकी रात के अंधेरे में गांव में घुस आए और सबको नाम ले लेकर बाहर बुलाया और फिर एक जगह पर खड़ा कर गोलियों से भून दिया था। इस दिन शहीद दिवस भी था और भारतीय जनता, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के बलिदान को याद कर रही थी, वहीं पाकिस्तानी आतंकी मजहबी कट्टरपंथ में अंधे होकर हिन्दुओं के खून से होली खेल रहे थे। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि 23 मार्च को पाकिस्तान का राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है।
मृतकों में 70 वर्षीय बुजुर्ग महिला से लेकर 2 साल का मासूम बच्चा तक शामिल था। क्रूरता की हद पार करते हुए एक दिव्यांग सहित 11 महिलाओं, 11 पुरुषों और 2 बच्चों पर एकदम पास से गोलियाँ चलाई गई थी। रिपोर्ट्स दावा करती हैं कि पॉइंट ब्लेंक रेंज से हिन्दुओं के सिर में गोलियाँ मारी गई थी। इसके बाद आतंकियों ने उनके घरों को लूटा और महिलाओं के गहने उतरवा लिए। शोपियाँ जिले में नदीमर्ग (अब पुलवामा में) एक हिन्दू बहुल गाँव था, जहाँ कुल 54 लोग ही रहते थे।
स्थानीय मुस्लिमों ने की थी आतंकियों की मदद:-
रिपोर्ट के अनुसार,आतंकियों को पड़ोस के मुस्लिम बहुलता वाले गाँवों से सहायता मिली थी। उस दौरान जम्मू-कश्मीर पुलिस के इंटेलिजेंस विंग को संभाल रहे कुलदीप खोड़ा का कहना है कि बिना स्थानीय मदद के नदीमर्ग नरसंहार को अंजाम ही नहीं दिया जा सकता था। नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी बताते है कि आतंकियों ने हिन्दूओं को उनके नाम से बुलाकर घरों से बाहर निकाला था। इससे स्पष्ट है कि आतंकी पहले से ही इस योजना पर काम कर रहे थे। इस पूरे कत्लेआम में राज्य की मुफ़्ती मोहम्मद सईद सरकार की भूमिका भी संदेह वाली रही थी। CM मुफ़्ती मोहम्मद के पैतृक गाँव से नदीमर्ग मात्र 7 Km दूर था। लेकिन नरसंहार वाली रात को उस इलाके की सुरक्षा में तैनात पुलिस को भी हटा लिया गया था। घटना से पहले वहाँ 30 सुरक्षाकर्मी तैनात थे, जिनकी तादाद उस रात घटाकर 5 कर दी गई थी। आज 19 साल बाद उस रात अपना सबकुछ गँवा देने वालों में इन्साफ की आस फिर से जगी है। अब देखना ये है कि, उन हिन्दुओं को इंसाफ और आतंकियों को सजा मिलती है या नहीं ?
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