चेन्नई: तमिलनाडु के कोयंबटूर और त्रिपुरा में हाल ही में बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ की गई कार्रवाई ने देश की सुरक्षा व्यवस्था और दस्तावेज़ी प्रक्रियाओं की खामियों पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। कोयंबटूर की एंटी-टेररिस्ट स्क्वॉड (ATS) ने 31 बांग्लादेशी घुसपैठियों को गिरफ्तार किया है, जो तिरुप्पुर और कोयंबटूर जिले में अवैध रूप से रह रहे थे। इसके अलावा, त्रिपुरा में भारत-बांग्लादेश सीमा पर तस्करी के प्रयासों को नाकाम किया गया है, जहाँ भारी मात्रा में अवैध सामान और हथियार बरामद हुए।
एटीएस की पाँच टीमों ने कोयंबटूर और तिरुप्पुर में एक ही रात में बड़े स्तर पर छापेमारी करते हुए 31 बांग्लादेशी नागरिकों को गिरफ्तार किया। ये लोग लंबे समय से तिरुप्पुर के शहरी और ग्रामीण इलाकों में रहकर मजदूरी कर रहे थे। पूछताछ में खुलासा हुआ कि इन घुसपैठियों ने पश्चिम बंगाल के रास्ते से भारत में प्रवेश किया और फर्जी दस्तावेज बनवाकर स्थानीय पहचान हासिल कर ली। ये सवाल बेहद अहम है कि इन फर्जी दस्तावेजों को बनाने में कौन लोग मदद कर रहे हैं? ये दस्तावेज़ न केवल इन घुसपैठियों को भारत का अवैध नागरिक बनने में मदद करते हैं, बल्कि उन्हें देश की चुनावी प्रक्रिया और सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने का रास्ता भी देते हैं।
त्रिपुरा में भारत-बांग्लादेश सीमा पर तस्करी और घुसपैठ के प्रयास लगातार जारी हैं। सिपाहीजाला जिले में बीएसएफ की सतर्कता ने धारदार हथियारों से लैस तस्करों के एक समूह को सीमा पार तस्करी करने से रोक दिया। महिला जवानों की फायरिंग के बाद तस्करों का प्रयास विफल हुआ। इस कार्रवाई में भारी मात्रा में प्रतिबंधित सामान, जैसे कि चीनी, कपड़े और अन्य सामग्री जब्त की गई, जिनकी अनुमानित कीमत 50 लाख रुपये से अधिक है।
इसके अलावा, खोवाई जिले में बीएसएफ ने तीन बांग्लादेशी नागरिकों को उस समय गिरफ्तार किया, जब वे भारत छोड़कर बांग्लादेश लौटने की कोशिश कर रहे थे। पूछताछ में इन घुसपैठियों ने स्वीकार किया कि वे एक भारतीय दलाल की मदद से भारत में प्रवेश कर पाए थे। यह खुलासा भारतीय सीमाओं पर सक्रिय संगठित दलाल नेटवर्क की ओर इशारा करता है, जो इस तरह की घुसपैठ को संभव बनाते हैं।
घुसपैठियों की मौजूदगी सिर्फ सुरक्षा के लिए खतरा नहीं है, बल्कि यह देश की चुनावी प्रक्रिया और कानून व्यवस्था को भी प्रभावित करती है। फर्जी दस्तावेज बनाकर ये लोग न केवल भारत के नागरिक बनने का दावा करते हैं, बल्कि मतदाता सूची में शामिल होकर देश की राजनीति और कानून व्यवस्था को भी प्रभावित करने लगते हैं। सवाल यह है कि फर्जी पहचान पत्र, आधार कार्ड, और अन्य सरकारी दस्तावेज बनाने में इनकी मदद कौन कर रहा है? क्या यह स्थानीय स्तर पर भ्रष्ट अधिकारियों और दलालों की मिलीभगत का नतीजा है, या इसके पीछे कोई बड़ा नेटवर्क काम कर रहा है?
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने हाल ही में तमिलनाडु पुलिस से अपील की थी कि बांग्लादेशी घुसपैठियों की जाँच और निगरानी की जाए। कोयंबटूर में की गई कार्रवाई इस अपील के बाद सामने आई है। यह दिखाता है कि राज्य सरकारें और एजेंसियाँ घुसपैठियों को रोकने के लिए सतर्क हो रही हैं, लेकिन शायद यह पर्याप्त नहीं है, इसके लिए और अधिक ठोस कदम उठाने की जरूरत है। जिसमे इन घुसपैठियों के मददगारों को कड़ी सजा देना और इनके नेटवर्क को ध्वस्त किया जाना शामिल है।