कोच्ची: केरल के कोझिकोड जिले में स्थित कडलुंडी गाँव में एक इमारत को लेकर विवाद के मामले में केरल हाई कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया है। यह विवाद सुन्नी सेंटर नामक इमारत के इस्तेमाल को लेकर था, जहाँ नमाज अदा की जाती है। स्थानीय प्रशासन ने पहले इस पर रोक लगाई थी, लेकिन कोर्ट ने इसे मंजूरी दे दी है। इस फैसले में कोर्ट ने कहा कि दूसरे समुदाय के विरोध के आधार पर किसी को धार्मिक गतिविधि से नहीं रोका जा सकता।
यह मामला 2004 से चला आ रहा है, जब केटी मुजीब नामक व्यक्ति ने अपनी इमारत में नमाज अदा करना शुरू किया था। यह इमारत उनके परिवार की थी। 2014 में मुजीब ने इसकी मरम्मत के लिए ग्राम पंचायत से अनुमति माँगी। पंचायत ने मरम्मत की अनुमति तो दी, लेकिन कुछ समय बाद स्थानीय हिंदू समुदाय ने शिकायत की कि इमारत का इस्तेमाल एक मस्जिद की तरह हो रहा है और इसे बिना अनुमति के बनाया जा रहा है। इस शिकायत के बाद पंचायत ने मरम्मत कार्य रोक दिया।
2016 में जिला प्रशासन ने भी इस इमारत में किसी भी प्रकार की नमाज या धार्मिक गतिविधि पर रोक लगाने का आदेश दिया। इस पर मुजीब ने हाई कोर्ट का रुख किया, जिसने अंतरिम राहत देते हुए नमाज अदा करने की अनुमति दी, लेकिन कुछ शर्तें भी रखीं। इनमें लाउडस्पीकर के इस्तेमाल और जुमे की नमाज पर रोक शामिल थी। स्थानीय हिंदू समुदाय ने इस इमारत के मस्जिद में बदलने का विरोध किया। उनका कहना था कि इसके लिए जरूरी कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं की गई। उन्होंने आरोप लगाया कि वहाँ संदिग्ध गतिविधियाँ हो रही हैं और यह इमारत मुजीब के घर के बजाय एक मस्जिद के रूप में काम कर रही है।
प्रशासन और पुलिस की रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि एक किलोमीटर के दायरे में पहले से चार मस्जिदें मौजूद हैं, इसलिए नई मस्जिद की आवश्यकता नहीं है। इसके आधार पर जिला कलेक्टर ने इमारत को नमाज के लिए इस्तेमाल करने की अनुमति (NOC) देने से इनकार कर दिया। केरल हाई कोर्ट के जस्टिस मुहम्मद नियास सीपी ने इस मामले की सुनवाई की। उन्होंने कहा कि केवल किसी एक समुदाय के विरोध के आधार पर किसी अन्य समुदाय को अपने धर्म का पालन करने से नहीं रोका जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि लोकतंत्र में हर नागरिक को अपने धार्मिक अधिकारों का पालन करने की स्वतंत्रता है।
जस्टिस नियास ने प्रशासन की उन दलीलों को खारिज कर दिया, जिनमें कानून-व्यवस्था बिगड़ने का आशंका जताई गई थी। उन्होंने कहा कि प्रशासन को केवल दूसरे समुदाय की आपत्तियों के आधार पर धार्मिक स्थल स्थापित करने से रोकने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने अपने आदेश में जिला कलेक्टर को निर्देश दिया कि वे NOC पर फिर से विचार करें और कोर्ट के आदेशों को ध्यान में रखते हुए नया फैसला लें। साथ ही, कोर्ट ने मुजीब को इमारत का इस्तेमाल नमाज अदा करने के लिए करने की अनुमति दी।
कोर्ट के इस फैसले के बाद अब सुन्नी सेंटर में धार्मिक गतिविधियाँ जारी रहेंगी। यह मामला धार्मिक स्वतंत्रता और सामुदायिक विवादों के बीच संतुलन साधने का एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन गया है। स्थानीय प्रशासन को अब कोर्ट के आदेशों के अनुरूप इस विवाद को हल करने के लिए कदम उठाने होंगे।
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