लॉकडाउन और कोरोना संकट मोर्चे पर भारी तनातनी और भरोसे पर ठेस के बाद पहली बार भारत में चीनी सामान और आयात पर लगाम को लेकर गंभीरता से विचार शुरू हुआ है. लेकिन यह कहना पूरी तरह ठीक नहीं होगा कि इसकी शुरूआत अभी से हुई है. दरअसल पिछले तीन चार सालों से इसकी प्रक्रिया शुरू हो गई जब दोनों देशों मे शीर्ष स्तर पर बातचीत के दौरान व्यापार घाटे को लेकर खुद प्रधानमंत्री के स्तर से बार बार सवाल उठाए जा रहे थे.
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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि इससे पहले व्यापार का लक्ष्य रखा जाता था और चीन की आक्रामक नीति के कारण हर बार यह लक्ष्य से ज्यादा होता था जिसमें चीन की हिस्सेदारी भी बढ़ती थी और भारत का व्यापार घाटा भी. भारत में औद्योगिक नीतियों के साथ साथ व्यापार को लेकर भी आक्रामकता अपनाई गई और इसी कारण पिछले छह सालों में चीन से होने वाले आयात में 10 फीसद तो भारत से निर्यात में 40 फीसद का इजाफा हुआ. लेकिन यह भी सच है कि आत्मनिर्भरता की लड़ाई अभी लंबी है.
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इसके अलावा वर्ष 2014 में भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग 1.90 लाख कारोबार का था जो 2019 के आखिर तक 4.5 लाख करोड़ के स्तर पर पहुंच गया. मोबाइल फोन बनाने वाली 10 से भी कम कंपनियां छह साल पहले भारत में उत्पादन कर रही थी. अब यह संख्या 200 से अधिक है. इसका नतीजा यह हुआ कि चीन से इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स आयात में पिछले दो साल में 9 अरब डॉलर की कमी आ गई.
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