भोपाल: 1980 से मौन रहने वाले एक संत आखिरकार 22 जनवरी को अयोध्या के राम मंदिर में राम लला के अभिषेक समारोह के बाद भगवान राम का नाम लेते हुए अपना पहला शब्द बोलेंगे। मध्य प्रदेश के 'मौनी बाबा' ने आखिरकार 44 साल में पहली बार 22 जनवरी को अपना मौन व्रत तोड़ने का फैसला किया है। वह 10 साल की उम्र से मौन हैं, जिससे उन्हें 'मौनी बाबा' नाम मिला है।
रिपोर्ट के अनुसार, जन्म के वक़्त उनका नाम मोहन गोपाल दास रखा गया था, माना जाता है कि 'मौनी बाबा' उन कार सेवकों में से थे, जिन्होंने बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया था। उन्होंने 10 वर्ष की छोटी सी आयु में ही मौन व्रत ले लिया था। कई लोग सोच रहे होंगे कि, फिर वे अपनी भावनाओं को कैसे अभिव्यक्त करते हैं? दरअसल, वह ऐसा चाक और स्लेट का उपयोग करते हैं। वह कभी-कभी कलम और कागज का भी उपयोग करते हैं। सन्यासी 1984 से नंगे पैर घूम रहे हैं, जब उन्होंने भगवान राम को "अयोध्या के सिंहासन" पर स्थापित करने के बाद ही चप्पल पहनने का संकल्प लिया था।
मौनी बाबा कागज पर लिखकर बताते हैं कि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर पूरा भरोसा है और उन्हें उद्घाटन समारोह में शामिल होने का निमंत्रण जरूर मिलेगा। निमंत्रण की आस में मौनी बाबा हर दिन पुलिस अधीक्षक कार्यालय और कलेक्टर कार्यालय जाते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने इस मामले में जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को भी आवेदन दिया है । मौनी बाबा का मूल स्थान सूर्य नगर पुलाव बालाजी है। हालाँकि, वह वर्तमान में मध्य प्रदेश के दतिया के मंदिरों में रहते हैं।
मौनी बाबा के अलावा झारखंड की 'मौनी माता' भी 22 जनवरी को अपना मौन व्रत तोड़ देंगी। झारखंड के धनबाद में जन्मी महिला सरस्वती देवी ने 30 साल पहले मौन व्रत लिया था। जब बाबरी मस्जिद ढहाई गई, तो सरस्वती देवी ने यह प्रतिज्ञा ली थी। उन्होंने प्रतिज्ञा की कि जब तक सरयू के तट पर पवित्र शहर अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण नहीं हो जाता, तब तक वह कुछ नहीं बोलेंगी। उनकी लंबी चुप्पी ने उन्हें 'मौनी माता' (मूक मां) का नाम दिया है। सरस्वती देवी के एक रिश्तेदार ने मीडिया को बताया कि वह राम जन्मभूमि न्यास और श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के प्रमुख नृत्य गोपाल दास से प्रेरित थीं। उनके शिष्यों ने उन्हें 22 जनवरी को मंदिर आने का निमंत्रण दिया है।
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