भगवान कृष्ण लाखों साल पहले अपना शरीर त्याग कर परधाम चले गए लेकिन आज भी उनका अस्तित्व इस धरती पर कायम हैं। धरती पर कुछ ऐसी जगह है जहां उनका एहसास आज भी भक्तों को होता है। आज भी उनकी लीलाएं धरती पर रची जाती हैं अगर आप कृष्ण जी की इन जगहों का अनुभव लेना चाहते है तो आइए आपको कृष्ण जी की उस भूमि पर ले चलते हैं।
कान्हा जी के प्रथम चरण ब्रजभूमि स्थित मथुरा में कान्हा जन्मभूमि मंदिर हैं। इस मंदिर में एक बहुत बड़ा ऊंचा चबूतरा हैं, उस जगह पर एक कंस कारागार बना हुआ था इसी कारागार में कान्हा का जन्म हुआ था।
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कारागार में जन्म लेने के बाद में कान्हा के पिता वासुदेव जी उन्हें नदी पार कर टोकरे में रखकर नंदगांव ले गए। यहां वासुदेव के मित्र नंदराय जी रहते थे। इनके घर में वासुदेव कान्हा जी को छोड़कर चले गए थे। आज नंदरायजी के में महल में कृष्ण जी का मंदिर बना हुआ हैं। यहां पर कभी—कभी उनकी किलकारी की गुंज सुनाई देती हैं।
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मथुरा से करीब 50 किमी दूर स्थित काम्यवन, वह स्थान है जहां पर कान्हा ने व्योमासुर राक्षेस का वध किया था। ऐसा कहा जाता है उसके वध के बाद में कान्हा ने ग्वालों के साथ में यहां पर भाोजन किया था। काम्यवन में पहाड़ी पर एक थाली और कटोरी की आकृति बनी है इसे कन्हैया की थाली कहा जाता है।
मथुरा से 20 किलोमीटर एक भांडीर वन है। पुराण के अनुसार, ब्रह्माजी ने इसी वन में श्री कृष्ण और राधा का विवाह कराया था। यहां पर कृष्ण राधा को बंसी सुनाते थे। ऐसा कहा जाता है आज भी इस वन में कान्हा के मुरली की धुन सुनी जाती हैं।
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वृंदावन के निधिवन में कान्हा जी का मंदिर है। इस मंदिर में आज भी कान्हा सेज सजाई जाती है। कहा जाता है कि आज भी इस मंदिर में राधा और कृष्ण विश्राम करने आते हैं। यहां पर बिस्तर सुबह में ऐसे अस्त—व्यस्त मिलते है जैसे रात में कोई सोया था।
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