इजराइल-हिजबुल्लाह के बीच 60 दिनों का लंबा संघर्षविराम, क्या मिडिल ईस्ट में आएगी शांति?

इजराइल-हिजबुल्लाह के बीच 60 दिनों का लंबा संघर्षविराम, क्या मिडिल ईस्ट में आएगी शांति?
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यरूशलम: इजरायल और लेबनान के मिलिटेंट ग्रुप हिजबुल्लाह के बीच 60 दिनों का युद्धविराम लागू हो गया है। यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के 1701 प्रस्ताव के तहत संभव हुआ है। इस समझौते का उद्देश्य दोनों पक्षों के बीच तनाव को कम करना और दक्षिणी लेबनान में स्थाई शांति की संभावनाएं तलाशना है। हालांकि, यह सीजफायर केवल दो महीने के लिए है, जिसके बाद दोनों पक्षों के बीच हालात फिर से बिगड़ सकते हैं।

यह युद्धविराम ऐसे समय में आया है जब इजरायल और चरमपंथी गुटों के बीच लंबे समय से टकराव चल रहा है। पिछले साल अक्टूबर में हमास ने इजरायल पर बड़ा हमला किया था, जिसमें हजारों नागरिक मारे गए और सैकड़ों को अगवा कर लिया गया। इसके जवाब में इजरायल ने गाजा पर सैन्य कार्रवाई शुरू कर दी। इसी दौरान, हिजबुल्लाह ने हमास का समर्थन करते हुए इजरायल पर हमले शुरू कर दिए। अब जबकि हिजबुल्लाह और इजरायल के बीच सीजफायर हो चुका है, गाजा में हमास और इजरायल के बीच तनाव अभी भी जारी है। 

सीजफायर के तहत, दक्षिणी लेबनान से हिजबुल्लाह के लड़ाके हटेंगे और उनकी जगह लेबनानी सेना तैनात की जाएगी। इजरायल को भी अपनी सीमा से सैनिकों को पीछे हटाने को कहा गया है। लेबनानी सेना यह सुनिश्चित करेगी कि इलाके में किसी तरह की अवैध गतिविधि न हो। इस युद्धविराम का फायदा दोनों देशों के विस्थापित लोगों को मिलेगा, जो अपने घर लौट सकेंगे। 

लेबनान और इजरायल के बीच हालात सुधारने की कोशिश में कई बड़े देश शामिल हुए, क्योंकि इस संघर्ष ने न केवल इन देशों बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता को भी प्रभावित किया। लेबनान में हिजबुल्लाह की गतिविधियों को रोकने के लिए सीजफायर के दौरान उसके अवैध ढांचे और हथियार भंडार हटाए जाएंगे। हिजबुल्लाह को ईरान से हथियार मिलते रहे हैं, जो सीरिया के जरिए लेबनान पहुंचते हैं। अब इजरायल सीरिया पर दबाव बढ़ाने के संकेत दे रहा है ताकि हिजबुल्लाह कमजोर हो सके।

हालांकि, इस युद्धविराम को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता। इजरायल ने स्पष्ट किया है कि जब तक उसके नागरिकों को बंधन से मुक्त नहीं किया जाता, वह हमले बंद नहीं करेगा। लेबनान-सीरिया सीमा पर इजरायल ने हाल ही में हमले भी किए हैं। ऐसे में शांति समझौता कितना सफल होगा, यह मिडिल ईस्ट के जटिल हालात को देखते हुए कहना मुश्किल है।

 

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