नई दिल्ली: आज के ही दिन सात नवंबर 1966 को गोहत्या पर बैन लगाने का कानून की मांग करते हुए संसद के बाहर जुटी साधु-संतों की भीड़ पर गोलियां बरसाईं गई थीं। इस फायरिंग में कितने साधुओं की मौत हुई थी, इस पर आज भी संशय है। यह आंकड़ा आठ-दस से लेकर सैकड़ों के बीच बताया जाता है, किन्तु यह भारतीय इतिहास की एक बड़ी घटना थी, जिसने तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार के लिए समस्या खड़ी कर दी थी।
इस घटना की 53वीं वर्षगांठ पर गुरुवार को कुछ संगठनों ने जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन कर पूरे देश में गोहत्या पर बैन लगाने की मांग की। जिस चौराहे पर साधुओं पर गोली चलाई गई थी, संगठनों की मांग है कि उस चौक का नाम 'गो भक्त बलिदानी चौक' रख दिया जाए। दरअसल, पचास के दशक के काफी मशहूर संत स्वामी करपात्री जी महाराज लगातार गोहत्या पर बैन लगाने के लिए एक कानून की मांग कर रहे थे। किन्तु केंद्र सरकार इस प्रकार का कोई कानून लाने पर विचार नहीं कर रही थी। इससे संतों का क्रोध लगातार बढ़ता जा रहा था। उनके आह्वान पर सात नवंबर 1966 को देशभर के लाखों साधु-संत अपने साथ गायों-बछड़ों को लेकर संसद के बाहर डट गए थे।
संतों को रोकने के लिए संसद के बाहर बैरीकेडिंग की गई थी। कहा जाता है कि इंदिरा गांधी सरकार को यह डर लग रहा था कि संतों की भीड़ बैरीकेडिंग तोड़कर संसद पर धावा बोल सकती है। कथित रुप से इस खतरे को टालने के लिए ही पुलिस को संतों पर गोली दागने का आदेश दे दिया गया। एक रिपोर्ट के अनुसार, तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा को इस बात का अहसास था कि वे वार्ता से स्थिति को संभाल लेंगे, किन्तु मामला हाथ से निकल गया और फायरिंग तक पहुंच गई। नंदा को इस घटना के बाद त्यागपत्र देना पड़ा था।
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