नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज सोमवार (29 जुलाई) को बिहार सरकार द्वारा दायर याचिका एक स्वीकार की। जिसमें राज्य सरकार ने पटना उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें अदालत ने पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जनजातियों (ST), अनुसूचित जातियों (SC) और अत्यंत पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण को 50% से बढ़ाकर 65% करने वाले बिहार संशोधन कानूनों को रद्द कर दिया था।
मामला सामने आने के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने बिहार की विशेष अनुमति याचिका पर अपील की अनुमति देने पर सहमति व्यक्त की। बिहार सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाने का अनुरोध किया। दीवान ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ से संबंधित इसी तरह के कानून में अंतरिम आदेश पारित किया है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया और मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया। CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि अंतरिम राहत को अस्वीकार किया जा रहा है और उन्होंने मामले को सितंबर के लिए सूचीबद्ध किया।
बता दें कि कि बिहार विधानसभा ने नवंबर 2023 में आरक्षण संशोधन विधेयक पारित किया था । यह विधेयक राज्य विधानसभा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मौजूदगी के बिना पारित किया गया था। संशोधित आरक्षण कोटे में अनुसूचित जातियों के लिए 20 प्रतिशत, अनुसूचित जनजातियों के लिए 2 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्गों और अत्यंत पिछड़े वर्गों के लिए 43 प्रतिशत शामिल किया गया था। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10 प्रतिशत कोटा के साथ संयुक्त करने पर, आरक्षण को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत की सीमा के मुकाबले 75 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया था। हालाँकि, पटना हाई कोर्ट ने इसे रद्द करते हुए कहा था कि आरक्षण सीमा 50 फीसद से अधिक नहीं जा सकती और अब सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में बिहार सरकार को राहत देने से इंकार कर दिया है।
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