कोच्ची: केरल के कोच्ची से एक बेहद हैरान कर देने वाला मामला प्रकाश में आया है। यहाँ के VPS लेकशोर अस्पताल और उसके 7 डॉक्टरों पर केरल के ब्रेन डेड व्यक्ति का अंग निकालने का इल्जाम लगा है। रिपोर्ट के अनुसार, व्यक्ति का लिवर मलेशिया के एक शख्स के शरीर में प्रत्यारोपित किया जाना था। मलेशियाई नागरिक की पत्नी को कथित तौर पर दाता (डोनर) के तौर पर दिखाया गया था। एर्नाकुलम में न्यायिक मजिस्ट्रेट (प्रथम श्रेणी) की कोर्ट ने कोल्लम के डॉ. एस गणपति की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अस्पताल और डॉक्टरों के खिलाफ मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम के तहत केस दर्ज करने का पर्याप्त आधार है।
रिपोर्ट के मुताबिक, 7 डॉक्टरों के साथ ही अस्पताल के एक अन्य डॉक्टर को भी आरोपी के रूप में नामजद किया गया है। कोर्ट ने 29 मई को को इस मामले में समन जारी किया था। यह घटना 2009 में की है। उस समय चिकित्सकों ने 21 वर्षीय अबिन वीजे के अंगों का प्रत्यारोपण किया था। अबिन एक हादसे का शिकार हो गया था। जिसके बाद उसे मार बेसेलियोस अस्पताल में उचित इलाज से वंचित कर दिया गया था। शिकायत में आरोप लगाया गया है कि घंटों बाद अबिन के परिजनों को विश्वास दिलाया गया कि वह ब्रेन डेड है। इसके बाद उनके महत्वपूर्ण अंगों को दान करने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
शिकायत में यह भी कहा गया है कि अस्पताल ने कानून तोड़ते हुए एक विदेशी नागरिक को अबिन के अंगों का प्रत्यारोपण किया। नियम के अनुसार, अंगों का प्रत्यारोपण केवल राज्य सूची, क्षेत्रीय सूची, राष्ट्रीय सूची, भारतीय मूल के शख्स को किया जा सकता है। विदेशी व्यक्ति का नाम सबसे अंत में आता है। कोर्ट ने दो सरकारी डॉक्टरों फोरेंसिक सर्जन पी एस संजय और सरकारी मेडिकल कॉलेज तिरुवनंतपुरम में न्यूरोलॉजी विभाग के अध्यक्ष थॉमस आईपे से भी पूछताछ की। पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉक्टर संजय ने कपाल गुहा (cranial cavity) में खून नहीं निकलने पर संदेह जाहिर किया है। कोर्ट ने कहा कि डॉ. आईपे ने कहा कि खून निकालने की वजह से मरीज की जान बचाई जा सकती थी।
लेकशोर अस्पताल ने कहा कि अनुचित ब्रेन-डेड सर्टिफिकेट जारी करने के इल्जाम तथ्यों पर खरे नहीं उतरते हैं। लेकशोर अस्पताल ने कहा कि, 'भले ही 1998 में केरल सरकार द्वारा मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम को स्वीकृत किया गया था, मगर इस पर कुछ भी रचनात्मक नहीं किया गया है। सोसाइटी फॉर ऑर्गन रिट्रीवल एंड ट्रांसप्लांटेशन उस वक़्त कैडेवर दान को बढ़ावा देने वाली केरल में एकलौती पंजीकृत संस्था थी। केरल नेटवर्क फॉर ऑर्गन शेयरिंग 2012 में गठित किया गया था। अस्पताल ने जांच में सहयोग करने की बात कही है।
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