लॉकडाउन और कोरोना संकट के बीच केंद्र सरकार पर कोरोना वायरस महामारी की आड़ लेकर श्रम कानून कमजोर करने का आरोप लगाते हुए आठ राजनीतिक पार्टियों ने संयुक्त रूप से राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखा है. शुक्रवार को भेजे गए पत्र में पार्टियों ने इस मुद्दे पर अपना विरोध जताया है.
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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि माकपा महासचिव सीताराम येचुरी, भाकपा महासचिव डी. राजा, भाकपा (माले) महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य, ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक महासचिव देबब्रत बिस्वास, रेवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी महासचिव मनोज भट्टाचार्य, राजद सांसद मनोज झा, काची तोल तिरुमावलावन के अध्यक्ष विदुतलाई चिरुताइगल और लोकतांत्रिक जनता दल नेता शरद यादव ने पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं.
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इसके अलावा इस पत्र में कहा गया है कि कामगारों के साथ गुलामों की तरह व्यवहार किया जा रहा है. इस स्थिति तक उन्हें लाना न केवल संविधान का उल्लंघन है बल्कि निष्प्रभावी बनाना भी है. गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और पंजाब ने फैक्ट्री अधिनियम में संशोधन किए बगैर काम के घंटे को आठ से बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया है. पार्टियों ने अन्य राज्यों के भी इस राह पर आने की आशंका जताई है. उत्तर प्रदेश ने फैक्ट्री, बिजनेस, प्रतिष्ठान और उद्योगों को श्रम कानून के तीन प्रावधानों और एक अन्य कानून को छोड़कर सभी प्रावधानों से तीन साल के लिए छूट दे दी है. मध्य प्रदेश सरकार ने सभी प्रतिष्ठानों को सभी श्रम कानूनों से एक हजार दिवस के लिए सभी जवाबदेही से मुक्त कर दिया है. पार्टियों ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था महामारी फैलने से पहले ही मंदी की ओर थी.
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