
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई हुई, जिसमें कोर्ट ने केंद्र सरकार से तीन तलाक कानून के तहत दर्ज FIRs की संख्या की जानकारी मांगी है। यह सुनवाई सीजेआई संजीव खन्ना की बेंच ने की, जिसमें कुछ याचिकाकर्ताओं ने तीन तलाक कानून को अंसवैधानिक घोषित करने की मांग की थी। उनका तर्क था कि इस कानून को समाप्त किया जाए।
बता दें कि, 22 अगस्त, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने खुद ही पूरी सुनवाई करते हुए मुस्लिमों में प्रचलित 1,400 वर्ष पुरानी तत्काल तीन तलाक की प्रथा को गैरकानूनी करार दिया था एवं इसे कुरान के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध बताया था और कहा था कि यह इस्लामी कानून शरीयत का उल्लंघन करती है। इस तरह इस कानून को सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी मिल गई थी, मगर अब वही सुप्रीम कोर्ट तीन तलाक़ कानून को असंवैधानिक बताने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है और केंद्र से जवाब मांग रही है। सीजेआई संजीव खन्ना ने इस मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा कि इस प्रथा को कोई भी वकील सही नहीं मानता, लेकिन मुख्य सवाल यह था कि क्या केवल तीन तलाक बोलने को अपराध की श्रेणी में रखा जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि तीन तलाक देने के बाद भी कई बार असल में तलाक नहीं होता है और पति-पत्नी का रिश्ता खत्म नहीं होता। हालांकि, केंद्र सरकार ने इस कानून में तीन तलाक बोलने को ही अपराध करार दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा कि तीन तलाक कानून के तहत कितनी FIRs दर्ज की गई हैं, खासकर एक्ट 3 और एक्ट 4 के तहत। एक्ट 3 में यह कहा गया है कि अगर कोई पति अपनी पत्नी को तीन तलाक बोलकर, लिखकर या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से तलाक देता है, तो यह गैर-कानूनी है। वहीं, एक्ट 4 के अनुसार अगर कोई पति तीन तलाक देता है, तो उसे तीन साल तक की सजा हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है। केंद्र सरकार की ओर से एडवोकेट तुषार मेहता ने अपनी दलील दी कि तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाना पूरी तरह से केंद्र के अधिकार क्षेत्र में आता है। उन्होंने यह भी कहा कि इस कानून में तीन साल की सजा का प्रावधान है, जबकि अन्य कानूनों में इससे कहीं कड़ी सजा हो सकती है।
तीन तलाक कानून को लेकर अगली सुनवाई मार्च में होगी। इस कानून के तहत, जो मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2019 में पारित हुआ था, तीन तलाक को गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध माना गया है। इसके तहत पीड़ित महिला को गुजारा भत्ता का अधिकार भी दिया गया है।