पिछले साल उत्तराखंड में टनल में फसे मज़दूरों की तरह ही एक और घटना सामने आई है। लेकिन इस बार यह खबर असम के गुवाहाटी की कोयला खदान से सामने आई है। खबर के मुतबिक, सोमवार को असम के दीमा हसाओ जिले की एक 300 फीट गहरी कोयला खदान में अचानक से पानी भर गया था। जिसके बाद कई मज़दूर खदान से बाहर निकल आए थे। लेकिन, उनमे से बाकी के 9 मज़दूर खदान में ही फसे रह गए थे। अब उन सभी मजदूरों के रेस्क्यू करने में सेना लग गई है। साथ ही इसमें NDRF और SDRF की टीमें भी सेना की मदद कर रही है।
कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक, खदान में 3 मजदूरों के शव दिखे हैं। लेकिन, सेना की टीम अभी तक उन्हें बरामद नहीं कर पाई है। सूत्रों से पता चला है कि खदान रैट माइनर्स की है। जिसमे करीबन 100 फीट तक अचानक पानी भर गया था, जिसे दो मोटरों की मदद से निकालने का काम जारी है। रैट माइनिंग में मज़दूर छोटे से छेद में घुसकर चूहे की तरह खुदाई करते है। इसमें एक छोटे से छेद से पहाड़ के किनारे से खुदाई शुरू की जाती है। साथ ही पोल बनाकर धीरे-धीरे हैंड ड्रिलिंग मशीन से उसमे ड्रिल किया जाता है। इसके अलावा इसमें हाथ से ही खदान के मलबे को बाहर निकाला जाता है।
इस प्रक्रिया का इस्तेमाल आमतौर पर कोयले की खुदाई में होता आ रहा है। भारत में इसे झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तर पूर्व में इस्तमाल किया जाता है। यह प्रक्रिया काफी खतरनाक होती है, इसलिए इसे भारत में कई बार बैन किया जा चुका है। इस माइनिंग की खोज कोयला खदानों में काम करने वाले मजदूरों ने की थी। जिसके बाद नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने साल 2014 में इस पर रोक लगा दी थी। विशेषज्ञों ने इसे एक अवैज्ञानिक तरीका घोषित कर दिया था। लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में जैसे की रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान इस रैट माइनिंग पर प्रतिबंध नहीं होता है।
देश के पूर्वोत्तर भाग में कोयला खदान से संबंधित आपदाए होना बहुत ही सामान्य है। हर साल खदान में मज़दूरों की फसने की खबर आ ही जाती है। इससे पहले जो सबसे बड़ी आपदा हुई थी वह 2019 में हुई थी, जब मेघालय में एक अवैध खदान में काम करने के दौरान खदान में पास की नदी का पानी भर गया था जिसमे कम से कम 15 मज़दूर दब गए थे।