नई दिल्ली: संसद में कल यानी सोमवार (8 अगस्त) को तमाम विपक्षी एकजुटता के बावजूद दिल्ली सेवा विधेयक राज्यसभा में भी पारित हो गया। पूर्व प्रधान मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनमोहन सिंह अपने खराब स्वास्थ्य के बावजूद, दिल्ली सेवा विधेयक के खिलाफ मतदान करने के लिए सोमवार को व्हीलचेयर पर राज्यसभा पहुंचे थे। इस कदम को लेकर, जहां विपक्ष ने मनमोहन सिंह की "ईमानदारी" के लिए उनकी प्रशंसा की, वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इसे "बेहद शर्मनाक" करार दिया।
आम आदमी पार्टी (आप) के सांसद राघव चड्ढा ने सदन में उपस्थिति के लिए मनमोहन सिंह को धन्यवाद दिया और कहा कि, “आज, राज्यसभा में, मनमोहन सिंह ईमानदारी के प्रतीक के रूप में खड़े हुए और विशेष रूप से काले अध्यादेश के खिलाफ मतदान करने आए। लोकतंत्र और संविधान के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता एक गहन प्रेरणा है। उनके अमूल्य समर्थन के लिए मैं हृदय से उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूं। धन्यवाद महोदय।' राज्यसभा में 90 वर्षीय कांग्रेस दिग्गज की उपस्थिति के कारण विपक्ष और भाजपा के बीच वाकयुद्ध देखने को मिला।
भाजपा ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि, ''देश कांग्रेस के इस पागलपन को याद रखेगा!'' कांग्रेस ने एक पूर्व प्रधानमंत्री को इतनी खराब हालत में भी संसद में देर रात व्हीलचेयर पर बैठाए रखा, वो भी सिर्फ अपने बेईमान गठबंधन को जिंदा रखने के लिए! बेहद शर्मनाक!” वहीं, कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने राज्यसभा में मनमोहन सिंह की उपस्थिति पर टिप्पणी के लिए भाजपा पर पलटवार किया और कहा कि यह पूर्व प्रधानमंत्री की "लोकतंत्र में आस्था" को दर्शाता है। मनमोहन सिंह के अलावा, झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के बीमार सांसद शिबू सोरेन भी उच्च सदन में मौजूद थे। दरअसल, राज्यसभा में इस बिल को गिराने के लिए विपक्ष, एक-एक वोट इकठ्ठा कर रहा था, इसलिए बीमार स्थिति में भी मनमोहन सिंह और शिबू सोरेन को बिल के खिलाफ मतदान करने सदन में आना पड़ा। इसी को भाजपा ने शर्मनाक बताया है।
बता दें कि, सोमवार का दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए एक झटका साबित हुआ, क्योंकि, सभी विपक्षी दलों से समर्थन लेने के बावजूद भी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक, 2023 या दिल्ली सेवा विधेयक, राज्यसभा में पारित हो गया। बिल के पक्ष में 131 वोट पड़े और विपक्ष में महज 101 वोट पड़े। बता दें कि, आम आदमी पार्टी और केंद्र के बीच विवाद का मुद्दा रहा यह बिल 3 अगस्त को लोकसभा में पारित हो गया था।
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