नई दिल्ली: भारत की आज़ादी की लड़ाई में कई वीरों ने देश के सम्मान और स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। ब्रिटिश हुकूमत ने भारत के गरीबों से जबरदस्ती धन लूटा और उसे अपने स्वार्थों के लिए इस्तेमाल किया। इसी लूटे गए धन को वापस लेने और मातृभूमि को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से कुछ साहसी क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंका। हालांकि, वामपंथी विचारधारा के लेखकों ने इन वीरों की गौरवगाथा को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया, जिससे उनके बलिदान और संघर्ष को सही रूप में इतिहास में दर्ज नहीं किया गया। कई दिनों तक अंग्रेज़ी मानसिकता के चलते क्रांतिकारियों को आतंकवादी, युद्ध अपराधी के रूप में पढ़ाया जाता रहा।
9 अगस्त 1925 को, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ, राजेंद्र लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह और अन्य क्रांतिकारियों के एक दल ने लखनऊ जिले के काकोरी रेलवे स्टेशन पर एक ट्रेन को रोककर ब्रिटिश सरकार का खजाना लूट लिया। इस साहसी कदम का उद्देश्य स्वतंत्रता संग्राम को आर्थिक समर्थन देना था, ताकि भारत को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त किया जा सके। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इन वीरों पर सशस्त्र विद्रोह, सरकारी खजाना लूटने, और हत्या के आरोप लगाए। इसके परिणामस्वरूप, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, और ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा दी गई, जबकि अन्य क्रांतिकारियों को कठोर दंड दिया गया। सभी क्रांतिकारी वन्दे मातरम् का उद्घोष करते हुए फंदों को चूम गए।
हालांकि कुछ क्रांतिकारियों के नाम इतिहास में दर्ज हुए, लेकिन कई वीर गुमनाम रह गए। उनके अद्वितीय साहस और बलिदान को याद कर, आज भी उन्हें सम्मानपूर्वक श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। उनके बलिदान की कहानियों को अमर रखने का संकल्प लिया जाता है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी उनके साहसिक कार्यों से प्रेरणा ले सकें। इन महान वीरों को बारम्बार नमन।
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