इस जगत की सभी वस्तुएं ,प्राणी आदि एक समय के बाद नष्ट ही हो जाते है. इसीलिए कहा गया है. की आया है सो जाएगा. इस जगत में सुख है तो दुःख भी है. दिन निकला है तो रात भी आएगी. ये सब प्रकृति के नियमानुसार ही होता है, व्यक्ति व्यर्थ में ही लगा रहता है की ये मेरा है ये मेरा है. उसे अपने धन दौलत पर बहुत ही अभिमान सा आ जाता है. वो ये नहीं जान पाता की ये सब एक दिन मेरे हाथ से छूट जाएगा ये तो सब उस ईस्वर ने दिया है. पर हम हमेशा यही कहते है की ये मेरा हे ये मेरा है. इसी के चलते आप इस कहानी के माध्यम से जीवन की सच्चाई को जान सकते है-
एक धर्मगुरु थे और उनके तीन पुत्र थे. कुछ दिनों से उनके ये तीनों पुत्र बड़े कष्ट में जीवन यापन कर रहे थे । दवा व सही ईलाज न मिलने की वजह से एक दिन प्रातः काल उन तीनों पुत्रों की मृत्यु हो गई. उस वक्त उनके पिता घर पर नहीं थे. शाम के समय जब पिता घर आए, तो उन्हें बच्चे कहीं दिखाई न दिए। तब उनके मन में विचार आया की वे सो गए होंगें. थोड़ा देर बाद जब वे भोजन करने बैठे तब उस समय उन्होंने पत्नी से पूछा,'क्या आज बच्चे जल्दी सो गए? पर पत्नी ने उनकी द्वारा पूछी गई बात का उत्तर दिए बिना उनसे कहा,
स्वामी, कल हमने अपने पड़ोसी से जो बर्तन लिए थे, उन्हें मांगने के लिए वे आज खुद आए थे।' पत्नी की बात को सुनकर उन्होंने कहा,'बर्तन तो उनके ही थे, इसीलिए वे लेने आ गए होंगे. आखिर पराई वस्तु का मोह हम क्यों करें? पराई वस्तु का मोह नहीं करना चाहिए न ही उसके जाने का दुःख प्रगट हो. पति की बात को सुनते ही पत्नी ने कहा, स्वामी, आप बिलकुल ठीक ही कह रहे हैं। मैंने उन्हें वे बर्तन लौटा दिए. अब में आज से किसी भी चीज पर मोह नहीं करूगीं इसके बाद पत्नी ने पति को भोजन करा दिया. भोजन करने के बाद भी जब उन्हें उनके बच्चे कंही न दिखे तो उन्होंने पहले तो घर का कोना-कोना छान मारा और फिर पत्नी से उनके बारे में पूछताछ की.
तब पत्नी उन्हें शयन-कक्ष में ले गई और उसने चारपाई के नीचे रखे तीनों बच्चों के शव दिखा दिए। पुत्रों के इस मृत शरीर को देखते ही वे बहुत दुखी हुए और फूट-फूटकर रोने लगे। तब पत्नी ने उनसे कहा,'स्वामी, आप अभी-अभी तो कह रहे थे कि कोई व्यक्ति अपनी वस्तु लेना चाहे, तो हमें वह दे देनी चाहिए और उसके लिए दुख नहीं करना चाहिए, लेकिन आप स्वयं इस बात को भूल रहे हैं. बच्चे भगवान ने ही तो हमें दिए थे, सो उन्होंने ले लिए, फिर हम उनके लिए क्यों व्यर्थ शोक करें? उन्हें तो एक न एक दिन तो जाना ही था. और हमें भी एक दिन जाना है, पत्नी की यह बात सुनकर उस पति रूपी संत के ज्ञान चक्छु खुल गए उन्हें इस जगत की सच्चाई का ज्ञान प्राप्त हो गया.
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