आप सभी को बता दें कि पुत्र के जीवन में होने वाली किसी भी प्रकार की अनहोनी से उसे बचाने के लिए उत्तर भारत में विशेष रूप से मनाया जाने वाला व्रत अहोई अष्टमी है. इस व्रत को कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी को मनाया जाता है. कहते हैं कार्तिक मास की महिमा बहुत अधिक होती है और इसे बताते हुए पद्मपुराण में लिखा गया है कि इस माह में प्रत्येक दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करने, व्रह्मचर्य व्रत का पालन करने, गायत्री मंत्र का जप एवं सात्विक भोजन करने से महापाप का भी नाश होता है इसी के साथ यह बहुत ख़ास होता है. कहते हैं इस माह में आने वाले सभी व्रत का विशेष फल मिलता है इसलिए अहोई अष्टमी भी इसी मास में मनाया जाने वाला पर्व है जिसका बहुत ही महत्व है. वहीं ज्योतिषों के अनुसार संतान की लंबी आयु एवं उसके जीवन में आने वाले सभी विघ्न बाधाओं से मुक्ति के लिए मनाया जाने वाला यह व्रत सिर्फ वही महिला रख सकती हैं जिनको संतान होती है और अन्य के लिए इस व्रत का कोई अर्थ नहीं होता है.
आइए जानते हैं शुभ मुहुर्त - कार्तिक कृष्ण पक्ष में चन्द्रोदय व्यापिनी अष्टमी को मनायी जानी चाहिए, इसलिए 2018 में 31 अक्टूबर को अहोई अष्टमी मनायी जाएगी.
समय - सायं - 5ः45 से 7ः00 बजे तक विशेष मुहुर्त
विधि - आप सभी को बता दें कि करवा चौथ के ठीक चार दिन बाद अष्टमी तिथि को देवी अहोइ व्रत मनाया जाता है और गोबर से या चित्रांकन के द्वारा कपड़े पर आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है तथा उसके बच्चों की आकृतियां बना दी जाती हैं और सायं काल या कहें प्रदोष काल में उसकी पूजा करते हैं. इस व्रत का प्रारंभ सुबह से ही स्नान एवं संकल्प के साथ किया जाता है और कलश के उपर करवाचौथ में प्रयुक्त किया हुए करवे में भी जल भर लिया जाता है. इसके बाद सायं काल में माता की पूजा अपने परम्परागत तरीके से फल, फूल, मिठाई व पकवान का भोग लगाकर विधिवत रूप से करने के उपरान्त आकाश में तारे आ जाने के तारों को करवे से अर्घ्य देने के बाद व्रत का समापन किया जाता है एवं अन्न-जल ग्रहण किया जाता है. इसके बाद उस करवे के जल को दीपावली के दिन पुरे घर में छिड़का जाता है जिससे लाभ होता है.
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