“जिस राष्ट्र को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह कभी उन्नत नहीं हो सकता।“: डॉ राजेंद्र प्रसाद
कविता। एक असाधारण व बहुमूल्य शब्द। हमारे लिए तो इस शब्द की महत्ता और भी बढ़ जाती है क्योंकि भारतीय साहित्य में निहित मूल्यों, संवेदनाओं और संदेशों को विश्व भर में उत्कृष्ट स्थान प्राप्त है। कविताएं निःसन्देह विराट भारतीय विरासत का ही एक अंग है जो हमारी संस्कृति, हमारी संवेदनाओं और जीवन के प्रति हमारी जीवटता को दर्शाती है।
भारतीय संस्कृति सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे संतु निरामयाः के आदर्शों पर आधारित है। हम वैश्विक उत्थान की धारणा में विश्वास रखते हैं। हमारी नीतियां, हमारे विचार सदैव ही करुणा व संवेदनाओं से युक्त रहे हैं, और यही वे तत्व हैं जो हमें अन्य राष्ट्रों से पृथक करते हैं। इन्हीं तत्वों ने हमारे साहित्य को श्रेष्ठता का दर्जा प्रदान किया है, और यही तत्व समाहित हैं हमारे कविता कोष में जो सदैव से मानव जीवन का न केवल पथ प्रदर्शित करते आ रहे हैं बल्कि जीवन का मूल्य भी समझाते आ रहे हैं।
बाल्यकाल से ही हमारे मानस पटल पर कविताएँ अंकित रही हैं। विद्यालयों में शिक्षकों द्वारा व पाठ्यक्रम में पढ़ाई गई कविताओं की गहराई उस समय तो उतनी समझ नहीं आई थी, किन्तु जीवन पथ पर आगे बढ़ते हुए उन कविताओं में निहित अर्थों का महत्व समझ आता गया। आज हम जीवन के सभी परिपेक्ष्यों में हमारे वृहद् कविता-कोष की प्रासंगिकता देख सकते हैं। कविताओं ने हमें लड़ना सिखाया, हमें क्षमा करना सिखाया, हमें विषमताओं का सामना करते हुए वर्तमान में रहना सिखाया। कविता की पंक्तियों में छुपे गूढ़ सन्देश ने ही सर्वप्रथम हमें प्रेरित किया। हमारे देश के कई महान स्वतंत्रता सेनानी जिन्होंने अंग्रेजों की गुलामी से हमें मुक्त करने के लिए अपने प्राण दे दिए, उन रणबांकुरों के अदम्य साहस और ऊर्जा का साधन भी कविताएँ बनीं हैं। गुलामी के समय कविताओं के माध्यम से देश भर में मातृभूमि की रक्षा के लिए अलख जगाया गया था।
कविताओं को अभिव्यक्ति के सबसे श्रेष्ठ साधन की संज्ञा प्राप्त है। विचारों की अभिव्यक्ति में जो सृजनात्मकता कविता प्रदान कर सकती है, वो कोई अन्य माध्यम नहीं कर सकता। शब्दों में गूँथे हुए इन भावों में इतनी शक्ति होती है कि ये अज्ञानी को ज्ञान, शक्तिहीनों को सामर्थ्य और भटके हुए पथिक को राह दिखा सकते हैं।
कविता के स्वरूप पर दृष्टि डालें तो इससे हमें कई बहुमूल्य सन्देश प्राप्त होते हैं। बहुत ही कम शब्दों में अपनी सभी बातों को निष्पक्ष, निश्छल और पूर्ण भाव से व्यक्त करना कविता हमें सिखाती है। शब्दों में बहुत ही सीमित होकर अर्थों में बहुत ही विस्तृत होना कविता का अनुरागी स्वरूप है। स्वयं के अंतःकरण में व्याप्त द्वंदों, द्वेषों को शब्दों में अभिव्यक्त कर अंतर्मन को सौम्य करना हमें कविता ने सिखाया है। जीवन पथ पर मिले कटु अनुभवों को शब्दों के माध्यम से साझा करना हमने कविता से सीखा है।
कविताएँ निःसंदेह हमारे राष्ट्र की धरोहर हैं। हमारे राष्ट्र की कई महान विभूतियाँ जिन्होंने राष्ट्र हित में सर्वस्य न्यौछावर कर दिया, आज भी शब्दों के माध्यम से हमारे बीच हैं। उनके शब्द आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित कर 'सकते हैं'। यहाँ 'सकते हैं' शब्द तर्क संगत है क्योंकि आने वाली पीढ़ी राष्ट्रीय साहित्य और भाषा से दूर होती जा रही है। आधुनिकता के नाम पर हम साहित्य के साथ ही मातृ भाषा हिंदी का भी ह्रास कर रहे हैं। हमारे युवा प्रेरित होने के लिए, ऊर्जा प्राप्त करने के लिए अंग्रेजी वक्ताओं को सुन रहे हैं, उनकी किताबें पढ़ रहे हैं। वे अपने ही घर में स्थित ज्ञान के खजाने (कविताएँ) से अनभिज्ञ हैं क्योंकि अब विद्यालयों में भी हिन्दी विषय केवल प्राथमिक कक्षाओं तक ही सीमित रह गया है। हमें हमारी युवा पीढ़ी को जागरूक करना होगा कि हमारा विराट साहित्य कितना अमूल्य और प्रेरणा युक्त है।
कविताएँ तो धरोहर हैं, कोई एक दिवस उनकी सार्थकता परिभाषित नहीं कर सकता, फिर भी आज विश्व काव्य दिवस पर हमें कविताओं का मर्म समझने कि आवश्यकता है। कविताओं में छुपे गूढ़ ज्ञान को विस्तारित करने का प्रयत्न करना होगा। कवियों कि कम होती संख्या यह दर्शाती है कि हमने कई रचनाओं को वह तवज्जो नहीं दी जिनकी वे हकदार थीं। नए युवा कवियों व साहित्य प्रेमियों को प्रोत्साहन देने के साथ ही उन्हें स्वयं को अभिव्यक्त करने के मंच प्रदान करने होंगे। कविता-कोष में छुपे ख़जाने की सार्थकता को पुनर्जीवित करना होगा। कविता। इस साधारण से शब्द में निहित असाधारण तत्व को उजागर करना होगा, तभी विश्व कविता दिवस मनाने की सार्थकता सिद्ध होगी। इन्हीं सकारात्मक अपेक्षाओं के साथ आप सभी को विश्व कविता दिवस की कोटिशः शुभकामनाएँ।
मेरे द्वारा लिखी गई यह रचना में हिन्दी साहित्य के विख्यात कवि व जटिल विषयों पर सरल भाषा में लिखने वाले महान साहित्यकार स्व. श्री केदारनाथ सिंह जी समर्पित करता हूँ जिनका हाल ही में 19 मार्च 2018 को देवलोकगमन हुआ है।