मेघालय में हारी बाजी को जीत में बदलती बीजेपी

मेघालय में हारी बाजी को जीत में बदलती बीजेपी
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बीजेपी के विजय रथ की रफ़्तार का कारण उसके सारथी ही है. किसी भी हालत में जीत को ही एक मात्र विकल्प के तौर पर देखने वाले बीजेपी के आलाकमान से लेकर  कार्यकर्ता तक को ये भलीभांति पता है कि हार को भी जीत में कैसे बदला जा सकता है. उसका ताजा उदाहरण है पूर्वोत्तर के तीन राज्यों- त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड में हुए चुनावों के नतीजे और सरकार बनाने की कवायदे .मेघालय में 6 मार्च को, नगालैंड में 7 मार्च को और त्रिपुरा में 8 मार्च को नई सरकार शपथ लेगी. इसके साथ ही बीजेपी तीन और नए राज्यों में भगवा फहरा देगी. तीनों राज्यों में 60-60 सदस्यीय विधानसभा हैं और विभिन्न कारणों से तीनों ही राज्यों में 59-59 सीटों पर मतदान हुआ.

तीन में से एक राज्य में बीजेपी का मुख्यमंत्री बनेगा तो दो राज्यों में वह सरकार में शामिल रहेगी. बीजेपी ने त्रिपुरा में 25 सालों से जारी वाम शासन को उखाड़ फेंका है. बीजेपी का पूरे त्रिपुरा में एक पार्षद भी नहीं था और उसने 2013 के चुनाव में दो प्रतिशत से भी कम वोट हासिल किया था. प्रदेश की 60 सदस्यीय विधानसभा में बीजेपी ने 35 सीटों पर जीत दर्ज की है वहीं नगालैंड में बीजेपी-एनडीपीपी का गठबंधन बहुमत से दूर है, हालांकि बीजेपी अब भी एनडीपीपी, एनपीपी, जेडीयू और एक निर्दलीय विधायक के साथ मिलकर सरकार बना सकती है.

मेघालय में सत्ताधारी कांग्रेस 21 सीटें जीतकर अकेली सबसे बड़ी पार्टी बनी है. बीजेपी ने मेघालय में केवल दो सीटें जीती हैं, लेकिन बीजेपी की सहयोगी नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) के पास 19 सीटें हैं. 6 सीटें जीतने वाली यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी (यूडीपी), 4 सीटें पाने वाली पीडीएफ, 2 सीटें जीतने वाली एचएसपीडीपी और एक निर्दलीय विधायक भी एनपीपी को समर्थन दे रही हैं. 

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