नई दिल्ली: भारत में आजकल एनपीए की बड़ी धूम है और हर जगह उसका ही बोलबाला है. देखा जाये तो सारे पब्लिक सेक्टर के बैंको का एनपीए, 734,000 करोड़ है और उसमे से नीरव मोदी का सिर्फ 11,400 करोड़ है जो पूरे एनपीए का सिर्फ 1.5% है. नीरव मोदी का यह घोटाला बैंकों के कुल एनपीए के सामने ऊंट के मुँह में जीरे जैसा प्रतीत होता हैं.
हालांकि, पिछले तीन वित्त मंत्री के कार्यकालों में बैंकों को एनपीए से उबारने की कोशिश की गई है, यहाँ तक कि, सरकार द्वारा बैंकों को इस संकट से उबारने के लिए पिछले 11 सालों में ढाई लाख करोड़ रूपए से भी ज्यादा दिए जा चुके हैं. अगर तुलना की जाए तो यह राशि भारत सरकार द्वारा ग्रामीण विकास के लिए आवंटित की गई राशि से भी ज्यादा है. बैंकों के पूंजी की कमी को देखते हुए सरकार की तरफ से यह पैसा बैंकों को पुनर्पूंजीकरण के लिए दिया गया है, लेकिन इसके बाद भी बैंकिंग क्षेत्र दिवालियेपन की कगार पर खड़ा है.
आपको बता दें कि, जब कोई कर्जदार बैंक को किश्त देने में नाकाम रहता है, तब उसका लोन अकाउंट नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) कहलाता है. नियमों के हिसाब से जब किसी लोन की ईएमआई, प्रिंसिपल या इंटरेस्ट ड्यू डेट के 90 दिन के भीतर नहीं आती है तो उसे एनपीए में डाल दिया जाता है. एनपीए को अनर्जक परिसंपत्ति भी कहा जाता है, मतलब बैंक कि वह परिसंपत्ति जो दी तो गई, पर अर्जित नहीं हो पाई.
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