चार दिन से देश, बॉलीवुड की मशहूर अदाकारा श्रीदेवी के शोक में डूबा है, मैं यह नहीं कहता कि मुझे दुःख नहीं है लेकिन क्या देश के अन्य मामले इस खबर से दब नहीं गए. हम बात कर रहे है शराबबंदी की, कहने को तो छोटा मुद्दा है कि देश के राज्य बिहार और गुजरात में शराब बंद है. वहां की सरकारों ने इस ओर अच्छा काम किया है जो लोगों का नशा छुड़ाया है. लेकिन इसकी तह में जाने पर स्थिति भयावह हो जाती है. लोगों के शराब पीने से जितने घर तबाह नहीं हुए थे उससे ज्यादा घर शराब बंद के कारण हुए है. आइये आपको ऐसे ही कुछ आकड़ें बताते है.
बिहार के एक मामले के अनुसार मस्तान मांझी ओर पेंटर मांझी दो सगे भाई है, शराब पीने के जुर्म में दोनों को पांच-पांच साल की सजा और एक लाख का जुर्माना ठोका गया है. बिहार की एक रिपोर्ट के अनुसार 2017 के बाद से बिहार में अब तक 3 लाख 88 हजार छापे और शराब पीने के जुर्म में 68579 लोगों को सलाखों के पीछे डाल दिया गया, साथ ही कुछ ऐसे भी मामले भी है जिनमें शायद खबर मीडिया तक पहुंची ही ना हो. आगे स्थिति और भी भयावह हो जाती है,जब यह मालूम पड़ा कि बिहार में कुल 58 जेल है जिनमें कैदियों की क्षमता 32000 है.
ऐसे में कम क्षमता वाली जेलों में गरीब, मजदुर, लोगों को जेल में डालकर उनका घर बर्बाद करने का जिम्मेदार कौन है? शायद नितीश कुमार को इस बारे में सोचना चाहिए. माना शराब बंद करने की अपील महिलाओं ने ही की थी अपने पतियों के लिए, लेकिन साथ ही उन्होंने यह नहीं कहा था की आप शराब पीने पर रोक लगाओ और शराब बनाने पर नहीं. धड़ल्ले से बिक रही शराब के पीछे किसका हाथ? मैं शराब की हिमाकत नहीं कर रहा हूँ लेकिन शायद नशा छुड़वाने के और भी तरीके हो सकते है.
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