हिंदी-उर्दू साहित्य के इतिहास की अगर बात की जाए, तो बहुत से ऐसे जादूगर हुए है जिन्होंने अपने शब्दों से साहित्य को नई उचाइयां दी है. ऐसे ही एक शख्स है, जिनके नाम के आगे ही जादू है. हम बात कर रहे है 'साहिर' लुधियानवी की जिन्होंने अपने गीतों से बॉलीवुड में ऐसा मुकाम खड़ा किया है, जो शायद ही कोई कर पाया हो. साहिर का जन्म 8 मार्च 1921 को लुधियाना के एक जमींदार परिवार में हुआ. हालाँकि पारिवारिक झगड़ों के कारण के अपने पिता से दूर रहे है जिसके कारण उन्हें गरीबी का सामना करना पड़ा, बावजूद उसके गरीबी को हराते हुए उन्होंने एक ऐसे शिखर को पाया है जो काबिल-ऐ-तारीफ है.
साहिर ने 1950 में प्रदर्शित ‘आजादी की राह पर’ फिल्म में अपना पहला गीत ‘बदल रही है जिंदगी’ लिखी, लेकिन फिल्म सफल नहीं रही. फिल्म ‘नौजवान’ में लिखे अपने गीत ‘ठंडी हवाएं लहरा के आए’ के बाद गीतकार के रूप में उन्होंने कुछ हद तक अपनी पहचान बनाई. गुरुदत्त की फिल्म ‘प्यासा’ साहिर के सिने करियर की अहम फिल्म साबित हुई. मुंबई के मिनर्वा टॉकीज में जब यह फिल्म दिखाई जा रही थी तब जैसे ही ‘जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहां हैं’ बजा, तब सभी दर्शक अपनी सीट से उठकर खड़े हो गए और गाने की समाप्ति तक ताली बजाते रहे. बाद में दर्शकों की मांग पर इसे 3 बार और दिखाया गया.
एक समय की बात है, जावेद अख्तर साहब गरीबी से जूझ रहे थे और अपने स्ट्रगल के दिनों में थे. चुकी साहिर लुधियानवी और जावेद अख्तर बेहद अच्छे दोस्त थे. जावेद साहब, साहिर लुधियानवी के घर गए थे और उन्हें पैसों की जरूरत थी. साहिर लुधियानवी ने अपने टेबल पर रखे 100 रूपये जावेद अख्तर साहब को दे दिए, बता दें, उस समय 100 एक बड़ी रकम होती थी.