ब्रह्म-मुहूर्त और इसकी वैज्ञानिकता

ब्रह्म-मुहूर्त और इसकी वैज्ञानिकता
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ब्रह्म मुहूर्त का ही विशेष महत्व क्यों? हमारे ऋषि मुनियों ने इस मुहूर्त का विशेष महत्व बताया है। उनके अनुसार यह समय निद्रा त्याग के लिए सर्वोत्तम है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने से सौंदर्य, बल, विद्या, बुद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। सूर्योदय से चार घड़ी (लगभग डेढ़ घण्टे) पूर्व ब्रह्म-मुहूर्त में ही जागना चाहिये। इस समय सोना शास्त्र निषिद्ध है। इसलिए कहा भी गया है -

“ब्रह्ममुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी”।

अर्थात - ब्रह्ममुहूर्त की निद्रा पुण्य का नाश करने वाली होती है।
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 ब्रह्म-मुहूर्त का सही समय और महत्त्व -

ब्रह्म-मुहूर्त अनेक कारणों से हमारे लिए महत्त्वपूर्ण है। व्यावहारिक रूप से यह समय सुबह सूर्योदय से पहले चार या पांच बजे के बीच माना जाता है। किंतु शास्त्रों में स्पष्ट बताया गया है कि रात के आखिरी प्रहर का तीसरा हिस्सा या चार घड़ी पूर्व अर्थात सूर्योदय से लगभग डेढ़ घण्टे पूर्व तड़के ही ब्रह्ममुहूर्त होता है।

धार्मिक महत्व - मान्यता है कि इस वक्त जागकर इष्ट या भगवान की पूजा, ध्यान और पवित्र कर्म करना बहुत शुभ होता है। क्योंकि इस समय ज्ञान, विवेक, शांति, ताजगी, निरोग और सुंदर शरीर, सुख और ऊर्जा के रूप में ईश्वर कृपा बरसाते हैं। भगवान के स्मरण के बाद दही, घी, आईना, सफेद सरसों, बैल, फूलमाला के दर्शन भी इस काल में पुण्य दायक होतें हैं।

वैज्ञानिक महत्त्व - ब्रह्म-मुहूर्त का विशेष महत्व देने के पीछे हमारे विद्वानों की वैज्ञानिक सोच निहित थी। वैज्ञानिक शोधों से ज्ञात हुआ है कि ब्रह्म-मुहुर्त में वायु मंडल प्रदूषण रहित होता है। इसी समय वायु मंडल में ऑक्सीजन (प्राण वायु) की मात्रा सबसे अधिक (41 प्रतिशत) होती है, जो फेफड़ों की शुद्धि के लिए महत्वपूर्ण होती है। शुद्ध वायु मिलने से मन, मस्तिष्क भी स्वस्थ रहता है।

गुरूदेव डाॅ. सर्वेश्वर जी शर्मा

चमत्कारी है परशुराम स्त्रोत का पाठ

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