लंदन: 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बारे में से हर भारतीय वाक़िफ़ है, कि कैसे उस समय भारत के वीर सपूतों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के जुल्मों के खिलाफ तलवारें निकाली थी और मातृभूमि की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी. ऐसे ही एक शूरवीर थे आलम बेग जिन्हे ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह करने के जुर्म में फांसी दे दी गई थी. विद्रोह के आरोप में भारत में जब बेग को फांसी दी गई थी तो उस समय कैप्टन एआर कास्टेलो ड्यूटी पर था.
अंग्रेजी हुकूमत उस स्वतंत्रता संग्राम को विद्रोह मानती थी, इसीलिए कास्टेलो उस समय शहीद आलम बेग के कपाल को ब्रिटेन ले गया था. तब से वो कपाल ब्रिटेन में ही है. लेकिन अब ब्रिटेन का एक इतिहासकार चाहता है कि उस भारतीय सैनिक का कपाल भारत को सौंपा जाए ताकि संग्राम के 160 वर्ष बाद इस शहीद सैनिक कि आत्मा को शांति मिल सके, यह इतिहासकार चाहता है कि इस सैनिक का कपाल उसी स्थान पर दफनाया जाए जहां उसने अंतिम लड़ाई में भाग लिया था.
लंदन स्थित क्वीन मैरी कॉलेज में ब्रिटिश इंपीरियल हिस्ट्री के वरिष्ठ लेक्चरर डॉ. किम वाग्नेर का कहना है कि आलम बेग के कपाल को भारत और पाकिस्तान के बीच सीमावर्ती इलाके में रावी नदी के किनारे दफनाना उचित रहेगा. यहां आलम बेग ने त्रिम्मू घाट की लड़ाई में भाग लिया था. आलम बेग के दुखद अंत के इर्द - गिर्द 1857 के विद्रोह पर वाग्नेर का शोध और लेखन 2014 में तब शुरू हुआ जब बेग के परिवार ने उनसे संपर्क किया जो कपाल लेने आया था. वर्ष 1963 में यह कपाल केंट में वाल्मेर नगर स्थित एक पब में मिला था. लॉर्ड क्लाइड पब के नए मालिक को यह कपाल एक छोटे से स्टोर रूम में मिला था. इस कपाल के बारे में लिखा था कि यह ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में शामिल एक भारतीय सैनिक का है जो स्कॉटलैंड की मिशनरी के पूरे परिवार की हत्या का आरोपी था.
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