80 साल पहले कॉमनवेल्थ गेम्स का आगाज़ होने के बाद से लेकर आज तक न जाने विभिन्न देशों के कितने खिलाड़ियों ने कॉमनवेल्थ खेलों में शिरकत की होगी, इनमे से कुछ ने मुकाबले जीतकर पदक प्राप्त किए होंगे तो कुछ खिलाड़ियों के हार जाने के कारण निराशा का हाथ थामा होगा. लेकिन क्या हार और जीत ही इस खेल का हिस्सा है ? जी नहीं, इस खेल का एक और अहम् हिस्सा है और वो है 'इंजुरी', जिसे हम चोट लगना या चोटिल होना कहते हैं.
इन्ही खेलों के दौरान न्यूजीलैंड के भारोत्तोलक लॉरेल हूबार्ड को कैरियर समाप्त कर देने वाली कोहनी की चोट का सामना करना पड़ा था, ऑस्ट्रेलिया का फ्रैंकोइस एतौदी भी घायल हो गया था, लेकिन उसने प्रतिस्पर्धा जारी रखी और कांस्य पदक जीता, वहीं वेल्श प्रतिद्वंद्वी जोशुआ भी 160 किग्रा उठाने के प्रयास के दौरान बुरी तरह चोटिल हो गए थे. ये घटनाएं इस विश्वास का एक लक्षण हैं कि एथलीटों को अपना लक्ष्य हासिल करने के रास्ते में कहीं भी नहीं रुकना चाहिए. संघर्ष करके, मुश्किलों से जूझ के, अपने शारीरिक और आत्मबल का चरम तक इस्तेमाल करके लक्ष्य तक पहुंचना ही एथलीट्स की पहचान होती है.
इन मूल्यों के सख्त पालन से नकारात्मक स्वास्थ्य परिणाम हो सकते हैं, फिर भी ऐसे लोग जो इन मूल्यों के अनुरूप तरीके से व्यवहार करते हैं, उन्हें आम तौर पर रोल मॉडल के रूप में माना जाता है. सिर्फ खेल के मैदान में ही नहीं इन खिलाड़ियों को निजी जीवन में भी काफी बलिदान करने पड़ते हैं, काफी अनुशासित जीवन जीना पड़ता है और अपने खेल के लिए सर्वस्व लगा देना पड़ता है. कॉमनवेल्थ खेल आपको यही सिखाते हैं और इस बात का अनुभव अनगिनत खिलाड़ी कर चुके हैं कि बिना साधना के कोई लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता.
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