हिन्दू धर्म में त्यौहारों का सिलसिला जारी हैं धनतेरस के बाद और दिवाली से एक दिन पहले छोटी दिवाल मनायी जाती है। देखा जाए तो उसका भी इतना महत्व रहता है जितना की बड़ी दिवाली का। यह पर्व आसिन मास के कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी को मनाई जाती है। छोटी दिवाली पर भी दिये जलाये जाते हैं हर तरफ रोशनी ही रोशनी नजर आती है। बस फर्क इतना होता है की इस दिन मिट्टी के नहीं बल्कि हाथों से बने गेहूॅं के आटे के दिये जलाये जाते है। पर कुछ लोग इस दिन भी मिट्टी के ही दिये जला देते है। छोटी दिवाली पर शाम के समय माता लक्ष्मी और भगवान गणेश जी की पूजा अर्चना कि जाती है। धनतेरस के बाद और दिवाली से एक दिन पहले मनाई जाने वाली यह दिवाली भी बहुत रोचक होती है, जो लोगों के लिए बहुत मायने रखता है।
छोटी दिवाली को मानाने का हर जगह के लोगों का अलग-अलग रीति-रिवाज होता है, कुछ राज्यों में इस दिन फूलों की रंगोली बनाई जाती है, क्योंकि उनका मानना होता है कि इस दिन माँ लक्ष्मी उनके घर को आती हैं। आमतौर पर, छोटी दिवाली को बलि प्रतिपदा के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि, इस दिन भगवान विष्णु ने केवल दो पगों से तीनों लोकों को नाप दिया था। इसलिए इस दिन को लोग छोटी दिवाली के रूप में मनाते हैं।
इसके अलावा, कुछ राज्यों में इस दिन लोग सुबह-सुबह उठ कर दरिद्र को अपने घर से बाहर निकालते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि उनके घर में दरिद्र का वास न हो, बल्कि हमेशा लक्ष्मी माँ विराजमान रहें। वहीं रात के समय एक दीपक घर के बाहर जलाया जाता है, जिसे जम का दिया कहते हैं। इसके पीछे यह मान्यता है कि घरों में सिर्फ ख़ुशी के दीपक जलने चाहिए, बाकि गम के दिए को हमेशा के लिए बाहर निकाल देना चाहिए।
इसलिए धनतेरस के दो दिन बाद दिवाली मनाई जाती है
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