हर व्यक्ति के जीवन में संतान सुख का निर्धारण उसकी कुंडली में विराजमान ग्रहों की स्थिति से होता है. व्यक्ति की कुंडली के पंचमेश योग संतान योग का कारक माने जाते है जिसके कारण व्यक्ति के जीवन में संतान की प्राप्ति होती है कई बार ऐसा भी होता है की संतान जन्म के कुछ समय बाद ही मर जाती है इसका कारण भी ग्रह ही होते है. आइये जानते है कि ग्रहों की स्थिति किस प्रकार व्यक्ति के संतान सुख को प्रभावित करती है. यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के पंचम, षष्टम या दशम भाव में पाप ग्रह विराजमान होते है तो उन्हें संतान सुख प्राप्त नहीं होता और यदि संतान जन्म भी ले लेती है तो कुछ समय के बाद उसकी मृत्यु हो जाती है.
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के पंचम भाव में मंगल ग्रह विराजमान होता है तो उसकी सभी संतान की मृत्यु जन्म के कुछ समय के बाद हो जाती है तथा यदि गुरु और शुक्र की दृष्टी पंचम भाव में होती है तो उसकी केवल एक ही संतान नष्ट होती है.
यदि व्यक्ति कुछ आसान से उपाय अपनाता है या पूजा आदि करवाता है तो उसके जीवन की यह समस्या भी समाप्त हो जाती है आइये जानते है इन ग्रह दोषों का निवारण किस प्रकार किया जा सकता है.
व्यक्ति की कुंडली के पंचम भाव के नवमांश पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टी न होकर केवल पाप ग्रह की दृष्टी होती है तो जितने पाप ग्रह होते है उस व्यक्ति के उतने ही गर्भ समाप्त होते है.
यदि किसी स्त्री की कुंडली के बंध्या योग, काक बंध्या योग, विषय कन्या योग, मृतवत्सा योग, संतित बाधा योग और गर्भपात योग होता है तो यह उसे संतान सुख से वंचित करता है.
संतान सुख प्राप्ति के लिए षष्ठी देवी का पूजन एवं उनके स्त्रोत का पाठ सुयोग संतान प्राप्ति के लिए सहायक होता है.
संतान गोपाल मंत्र
ॐ क्लीं ॐ क्लीं देवकीसुत गोविंद वासुदेव जगत्पते.
देहि ने तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं क्लीं क्लीं क्लीं ॐ.
का नियमित पाठ संतान सुख प्राप्ति के लिए अति उत्तम होता है.
भगवान शिव की आराधना एवं गौ दान आदि पूजा अनुष्ठान करने से भी संतान सुख की प्राप्ति होती है.
इसलिए भगवान शिव की तस्वीर हमेशा इस दिशा में लगायी जाती है
भगवान भोले की नगरी का यह इतिहास शायद ही आप जानते हों
आपकी यही गलती भगवान शिव को कर देती है जल्दी नाराज
इसलिए भगवान शिव के हर मंदिर में होती है नंदी की प्रतिमा