राजस्थान के बाद अब एमपी के दोनों उप चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद तीन राज्यों में कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता खुद को सीएम पद का चेहरा घोषित करने का ख्वाब देखने लगे होंगे. राजननीति में पद की लालसा करना गलत नहीं है , लेकिन मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में होने वाले चुनाव में कांग्रेस की मजबूरी है, कि वो चाहकर भी इन तीन राज्यों में सीएम का चेहरा पेश नहीं कर सकती.
उल्लेखनीय है कि जहाँ तक एमपी का सवाल है, तो यहां सीएम पद के चार दावेदार कमलनाथ ,ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिग्विजय सिंह और प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव हैं.राहुल गाँधी पर अरुण यादव को हटाने का दबाव है, वहीं कमलनाथ का सवाल है, तो पार्टी को भी लगता है कि उनका अपने निर्वाचन क्षेत्र के अलावा बाहर कोई विशेष प्रभाव नहीं है . जबकि दूसरी ओर ज्योतिरादित्य सिंधिया युवा होने से मतदाताओं को आकर्षित तो करते हैं , लेकिन कमलनाथ की तरह वह कुशल प्रबंधक नहीं हैं. महासचिव दिग्विजय सिंह का जनाधार व्यापक है , लेकिन उनके पिछले दस वर्ष के शासन में प्रदेश की हुई अवनति से मतदाताओं के बिदकने का डर है.इसलिए कांग्रेस पशोपेश में है.
इसी तरह राजस्थान में भी सी.एम. पद के दावेदारों में अशोक गहलोत, सी.पी. जोशी, नमो नारायण मीणा, जितेंन्द्र सिंह और गिरजा व्यास के नामों की लम्बी फेहरिस्त है.लोक सभा और विधान सभा की हालिया जीत ने सचिन पायलट का दावा और मजबूत हुआ है.यहां जातीय समीकरण भी आड़े आ रहे हैं,इसलिए कांग्रेस सीएम का चेहरा पेश नहीं कर पा रही है. छत्तीसगढ़ में भी भूपेश बघेल को प्रदेश अध्यक्ष व टी.एस. सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाया . लेकिन राहुल गाँधी ने राम दयाल और शिवकुमार को कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर संतुलन बनाने की कोशिश की है . इसलिए कांग्रेस महासचिव और राजस्थान प्रभारी अविनाश पांडे ने राहुल को सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने का सुझाव दिया है , ताकि जीत के बाद सबकी राय से नेता चुना जा सके.
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