आशा -निराशा के बीच झूलता अन्ना आंदोलन

आशा -निराशा के बीच झूलता अन्ना आंदोलन
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नई दिल्ली : समाजसेवी अन्ना हजारे के आन्दोलन का आज छठा दिन है. समय के साथ इधर उनकी सेहत भी बिगड़ती जा रही है,तो उधर सरकार की तरफ से भी उन्हें मनाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं.आज अन्ना और सरकार के बीच कोई सहमति बनने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है. फ़िलहाल तो अन्ना आंदोलन आशा -निराशा के बीच झूल रहा है.

बता दें कि अन्ना के अनुसार सरकार कई लोगों को बातचीत के लिए भेज रही है.लेकिन अब तक कोई ठोस बातचीत नही हो पाई है.अन्ना ने बताया कि किसानों को फसल लागत का डेढ़ गुणा दाम देने पर सरकार राजी है, लेकिन देंगे कैसे इस पर सरकार मौन है.फसल का बिक्री मूल्य निर्धारित किए जाने की भी बात हुई.निर्धारित मूल्य से कम दाम मिलने पर सरकार भरपाई करे. अन्ना ने कृषि मूल्य आयोग को चुनाव आयोग की तरह संवैधानिक दर्ज़ा देने की भी मांग की है. अन्ना की नज़र में किसानों के लिए सरकार के पास कोई योजना नही है.

उल्लेखनीय है कि सरकार ने लोकपाल और लोकायुक्त नियुक्ति की मांग चुनाव आयोग के पास भेजने की बात कही, लेकिन मांगें पूरी होने तक अन्ना अनशन खत्म करने को राजी नहीं है .जबकि छः दिनों में अन्ना का वजन पांच किलो से ज्यादा घट गया है.पंजाब , महाराष्ट्र, यूपी, एमपी, राजस्थान जैसे अन्य राज्यों के लोग इस आंदोलन में शामिल हुए हैं , जिनमें अधिकांश किसान हैं.अन्य कई समूह भी आंदोलन में जमे हैं.लेकिन इस बार इस आंदोलन से युवा और शहरी वर्ग गायब है. आंदोलन बिखरा, फीका और जोशहीन नज़र आ रहा है. अन्ना भीड़ को नहीं मुद्दे को अहम मान रहे हैं.रामलीला का दृश्य कुछ यूँ उभर रहा है, कि एक ओर किसानों की सरकार से निराशा है , तो दूसरी तरफ से अन्ना से आशा है. फ़िलहाल तो इसीके बीच यह आंदोलन झूल रहा है.

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