आप सभी को बता दें कि इस बार धनतेरस 5 नवम्बर 2018 यानी सोमवार के दिन आ रही है ऐसे में आप सभी को बता दें कि धनतेरस का अर्थ है, अश्विन के कृष्ण पक्ष में धन की पूजा करना. धनतेरस पर घर में नई चीजों को लाना बहुत शुभ माना जाता है और इस दिन आस-पास से बुरी ऊर्जा और आल्स्य को हटाने के लिए सभी वस्तुओं को साफ किया जाता है. वहीं ऐसा भी मानते हैं कि इस दिन घर में सोने व चांदी के सिक्के, गहने, नये बर्तन लाना पूरे वर्ष के लिए लक्ष्मी को स्थापित करता है. वहीं कहा जाता है इस दिन देव धनवंतरि का जन्म दिन है और धनतेरस को धनवंतरी त्रियोदशी, धनवंतरी जयंती पूजा, यमद्वीप और धनत्रयोदशी भी कहा जाता है. अब आइए जानते हैं धनतेरस की प्राचीन कथा.
प्राचीन कथा -
भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने के लिए आ रहे थे. लक्ष्मी जी ने भी साथ चलने का आग्रह किया. विष्णु जी बोले- 'यदि मैं जो बात कहूं, वैसे ही मानो, तो चलो.' लक्ष्मी जी ने स्वीकार किया और भगवान विष्णु के साथ धरती पर आई. कुछ देर बाद एक स्थान पर भगवान विष्णु लक्ष्मी से बोले- 'जब तक मैं न आऊं, तुम यहां ठहरो.
मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं, तुम उधर मत देखना.' विष्णुजी के जाने पर लक्ष्मी जी को कौतुक उत्पन्न हुआ कि दक्षिण दिशा में क्या है, जो मुझे मना किया गया है और भगवान स्वयं दक्षिण में क्यों गए, कोई रहस्य जरूर है. मां लक्ष्मी विष्णु जी के पीछे-पीछे चल पड़ीं. रास्ते में सरसों का खेत आया. लक्ष्मी जी वहां चली गई.
सरसों की शोभा से वे मुग्ध हो गईं और उसके फूल तोड़कर अपना श्रृंगार किया और आगे चलीं. आगे गन्ने का खेत आया. लक्ष्मी जी गन्ने खाने लगी, तभी विष्णु जी आए और यह देख लक्ष्मी जी पर नाराज हुए- 'मैंने इधर आने को मना किया था, पर तुम न मानीं.
यह किसान की चोरी का अपराध कर बैठीं.अब तुम उस किसान की 12 वर्ष तक इस अपराध की सजा के रूप में सेवा करो.' कहकर भगवान उन्हें छोड़कर क्षीरसागर चले गए. लक्ष्मी किसान के घर रहने लगीं. किसान बहुत गरीब था. लक्ष्मीजी ने किसान की पत्नी से कहा कि तुम स्नान कर पहले इस मेरी बनाई देवी लक्ष्मी का पूजन करो, तुम जो मांगोगी मिलेगा. किसान की पत्नी ने ऐसा ही किया. पूजा के प्रभाव और लक्ष्मी की कृपा से किसान का घर दूसरे ही दिन से अन्न, धन, रत्न, स्वर्ण आदि से भर गया. लक्ष्मी ने किसान को धन-धान्य से पूर्ण कर दिया. किसान के 12 वर्ष बड़े आनन्द से कट गए. 12 वर्ष के बाद लक्ष्मीजी जाने के लिए तैयार हुई. विष्णुजी, लक्ष्मीजी को लेने आए तो किसान ने उन्हें भेजने से इंकार कर दिया लक्ष्मी भी बिना किसान की मर्जी वहां से जाने को तैयार न थीं. विष्णुजी जिस दिन लक्ष्मी को लेने आए थे, उस दिन वारुणी पर्व था. इसलिए किसान को वारुणी पर्व का महत्व समझाते हुए भगवान ने कहा कि तुम परिवार सहित गंगा में जाकर स्नान करो.
इन कौड़ियों को भी जल में छोड़ देना.जब तक तुम नहीं लौटोगे, तब तक मैं लक्ष्मी को नहीं ले जाऊंगा. लक्ष्मीजी ने किसान को चार कौड़ियां गंगा के देने को दी. किसान ने वैसा ही किया. वहां जैसे ही उसने गंगा में कौड़ियां डालीं, वैसे ही चार हाथ गंगा में से निकले और वे कौड़ियां ले लीं. तब किसान को आश्चर्य हुआ कि वह तो कोई देवी है. तब किसान ने गंगाजी से पूछा 'हे माता! ये चार भुजाएं किसकी हैं?' गंगाजी बोलीं 'ये चारों हाथ मेरे ही थे. तूने जो कौड़ियां भेंट दी हैं, वे किसकी दी हुई हैं?' किसान ने कहा- 'मेरे घर जो स्त्री आई है, उन्होंने ही दी हैं.' इस पर गंगाजी बोलीं कि तुम्हारे घर जो स्त्री आई है वह साक्षात लक्ष्मी हैं और पुरुष विष्णु भगवान हैं. यह सुन किसान घर लौट आया. वहां लक्ष्मी और विष्णु भगवान जाने को तैयार बैठे थे. किसान ने लक्ष्मीजी का आंचल पकड़ा और बोला कि मैं आपको जाने नहीं दूंगा. तब भगवान ने किसान से कहा कि इन्हें कौन जाने देता है, पर ये तो चंचला हैं. कहीं ठहरती ही नहीं. मेरे कहने पर 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही थीं. तुम्हारी 12 वर्ष सेवा का समय पूरा हो चुका है.
किसान हठपूर्वक बोला कि नहीं अब मैं लक्ष्मीजी को नहीं जाने दूंगा. तब लक्ष्मीजी ने कहा - तुम मुझे रोकना चाहते हो तो जो मैं कहूं जैसा करो. कल तेरस है, मैं तुम्हारे लिए धनतेरस मनाऊंगी. तुम कल घर को लीप-पोतकर, स्वच्छ करना. रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना और शाम को मेरा पूजन करना और एक तांबे के कलश में रुपया भरकर मेरे निमित्त रखना, मैं उस कलश में निवास करूंगी.किंतु पूजा के समय मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी. मैं इस दिन की पूजा करने से वर्ष भर तुम्हारे घर से नहीं जाऊंगी. मुझे रखना है तो इसी तरह प्रतिवर्ष मेरी पूजा करना. यह कहकर वे दीपकों के प्रकाश के साथ दसों दिशाओं में फैल गईं और भगवान देखते ही रह गए. अगले दिन किसान ने लक्ष्मीजी के कथानुसार पूजन किया. उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया. इसी भांति वह हर वर्ष तेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा करने लगा.
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