हमारा देश भारत त्योहारों का देश है , जहाँ अमूमन हर माह कोई न कोई त्योहार मनाया जाता है. ऐसा ही एक त्यौहार शीतला सप्तमी है , जिसे होली के बाद चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को मनाया जाता है. इस वर्ष शीतला सप्तमी पर्व आज 8 मार्च 2018, गुरुवार को मनाया जाएगा. इस पर्व का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है. वस्तुतः शीतला सप्तमी का यह पर्व महिलाओं द्वारा आरोग्य और धन आपूर्ति की मनोकामना के लिए किया जाता है.प्राचीन मान्यता है कि जिस घर की महिलाएं शुद्ध मन से इस व्रत को करती है, उस परिवार को शीतला देवी धन-धान्य के भंडार भरकर प्राकृतिक विपदाओं से भी दूर रखती हैं. शीतला माता हर तरह के तापों का नाश करअपने भक्तों के तन-मन को शीतल करती हैं, क्योंकि इनका नाम ही मां शीतला है.
ख़ास बात यह है कि हिंदू व्रतों में केवल शीतला सप्तमी का व्रत ही ऐसा है, जिसमें बासी भोजन किया जाता है. इस पर्व को बसोरा (बसौड़ा) भी कहा जाता है. इस दिन घर में ताजा भोजन नहीं बनाया जाता. एक दिन पहले ही भोजन बनाकर तैयार कर लिया जाता है .फिर दूसरे दिन प्रात:काल महिलाओं द्वारा शीतला माता का पूजन करने के बाद घर के सभी लोग बासी भोजन को नैवेद्य के रूप में स्वीकार किया जाता है.
व्रत कथा : बता दें कि शीतला माता पर्व को खास कर उत्तर भारत में तो रोगों को दूर करने वाला माना जाता है .इस शीतला सप्तमी व्रत की एक कथा भी प्रचलित है, जिसमें एक बुढ़िया व उसकी दो बहुओं द्वारा प्रसूति के पश्चात् बसी खाना न खाकर ताजा खाना खा लिया जाता है . इस पर उनकी सास उन्हें घर से निकाल देती है. रास्ते में एक पेड़ के नीचे उनकी भेंट शीतला और उनकी बहन से होती है, जो अपने सिर में पड़ी जूंओं से बहुत परेशान थी. दोनों बहुएं उनकी मदद कर सिर से जूंए निकाल देती है.इस पर वे इन दोनों बहुओं को गोद हरी होने का आशीर्वाद देती है .लेकिन दोनों अपने शिशुओं के मृत होने की बात कहती है, तब उन्हें शीतला अपने पाप कर्म की याद दिलाती है.इस पर बहुएं पहचानती हैं कि यह तो साक्षात शीतला माता हैं तो उनके चरणों में पड़कर उनसे क्षमा याचना करती है. इस पर माता को भी उनके पश्चाताप पर दया आ जाती और उनके मृत शिशु फिर से जीवित हो जाते हैं .तब दोनों खुशी-खुशी वापस गांव अपने ससुराल लौट कर इस चमत्कार को बताती है.इसके पूरा गांव माता को मानकर इस पर्व को मनाने लगता है.
आम तौर पर कम लोगों को जानकारी है कि माँ शीतला का वाहन गधा है. जिस पर वह आरूढ़ है .जिनके देश में कई मंदिर भी हैं जहाँ पूजा अर्चना की जाती है. इसके अलावा कहीं वट वृक्ष के नीचे भी इस माँ की प्रतिमा की महिलाओं द्वारा शीतल जल से स्नान के बाद विधिवत पूजा की जाती है. बासी भोजन का नैवेद्य लगाकर कोरा कागज भी माँ को इस भाव से अर्पित किया जाता है कि वह अपने भक्त का भाग्य लिख सके. इस दिन अग्नि का प्रयोग वर्जित रहता है. इस दिन महिलाएं रसोई में अग्नि से जुड़ा कोई कार्य नहीं करती है.