झारखण्ड में रहने वाले चिकित्सक दंपती ने आदिवासी और गरीब बच्चो को शिक्षित करने के लिए एक गजब का प्रयास शुरू किया है. झारखंड के देवघर जिले का मोहनपुर प्रखंड. इसी प्रखंड में बसा हुआ है बाबूपुर गांव. बाबूपुर गांव में करीब 500 की आबादी है. जिसमे करीब 60 घर आदिवासियों के है. जो काफी बदहाली और गरीबी मेंअपना जीवन यापन करते है. यहाँ के लोग अशिक्षा और गरीबी के कारण शहरों की ओर अपना पलायन कर रहे है. अधिकांश लोगो को अशिक्षा ने दलदल में फसा कर रखा है. लगभग देश के हर गांव हर कोने की यही कहानी है, देश को दरकार है इसी तरहके प्रयास की, जो यह दंपती कर रहा है.
दूर हो गरीबी का चक्र...
गांव के बच्चे शिक्षा से दूर न हो, और वे इसके चलते गरीबी के बुरे चक्र में न फंसे. इसी प्रकार की सोच के साथ देवघर के डॉ दंपती सर्जन डॉ. राजीव पांडेय और स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. किरण ने बाबूपुर गांव को गोद लिया है, दंपती ने गांव के एक स्कूल के बंद पड़े बरामदे में गरीब बच्चो का विशेष विद्यालय शुरू किया है. और गाँव के ही दो शिक्षित युवक मटरू मुर्मू और संतोष मुर्मू को बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी सौंपी है.
बदल रही तस्वीर..
मटरू और संतोष दोनों ही स्नातक है. इन दोनो ने नौकरी के कई प्रयास किए, लेकिन इन्हे असफलता ही हाथ लगी. अब ये इस स्कूल में पढ़ा रहे है. जिसके लिए डॉ दंपती उन्हें वेतन का भुगतान भी करते है. इसके अलावा वे खेती भी करते है. चौथी कक्षा के छात्र शंकर कुमार का कहना है कि वह डॉक्टर अंकल की तरह डॉक्टर बनना चाहता है. इस बच्चे के पिता शहर में वाहन चालक है. तीसरी कक्षा के छात्र संजीव मुर्मू ने बताया कि वह शिक्षक बनना चाहता है. ताकि वह भी अपने जैसे अन्य बच्चो को शिक्षित कर सके. गांव के सरजू मुर्मू ने बताया कि इस स्कूल में पढ़ने के कारण उनका पोता तो अंग्रेजी भी बोलता है. अतः कहा जा सकता है कि डॉ दंपत्ति के इस प्रयास से वास्तव में गांव की तस्वीर बदल रही है.
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