सभी व्यक्तियों के शरीर में मुख्यतः पांच ज्ञानेन्द्रियाँ होती है जो नाक, कान, जीभ, त्वचा और आँख है, किन्तु कुछ व्यक्ति की छटी ज्ञानेंद्री भी क्रियाशील हो सकती है ये उन लोगों के साथ ज्यादातर होता है जो अधिक संवेदनशील होते है. कई लोग इसे जाग्रत करने के लिए तप, साधना तथा ध्यान का सहारा भी लेते है. कई लोग छटी इंद्री से आने वाली घटना का पूर्वानुमान लगा लेते है तथा उस होने वाली घटना की जानकारी उन्हें पहले ही हो जाती है.यह कोई बिमारी नहीं अपितु एक वरदान है जो सभी के पास नहीं होता है. ये उस व्यक्ति की छटी इन्द्री के क्रियाशील होने की तरफ इशारा करता है.
छटी इंद्री का स्थान- सभी मनुष्य में छटी इंद्री होती है, किन्तु वह निष्क्रय होती है इसका स्थान मस्तिष्क के अन्दर कपाल के नीचे एक छिद्र होता है जिसे ब्रम्हारंध्र कहते है यहीं से सुषुम्ना नाड़ी रीढ़ अपने मूलाधार को जाती है सुषुम्ना नाड़ी सह्स्त्रकार से जुड़ी होती है तथा इड़ा नाड़ी शरीर के बाएँ तरफ होती है जो पिंगला नाड़ी दायें में स्थित होती है अर्थात इड़ा नाड़ी में चन्द्र स्वर एवं पिंगला नाड़ी में सूर्य स्वर स्थित होता है यही पर छटी इन्द्री होती है और जब व्यक्ति की नाक के दोनों स्वर चलते है तो उसकी छटी इन्द्री जाग्रत होती है.
छटी इन्द्री से लाभ- इससे दुसरे व्यक्ति के मन की बात का पता चलता है, भविष्य में होने वाली घटना की जानकारी मिलती है किसी के अतीत में जाया जा सकता है एक ही स्थान से सभी जगहों की जानकारी मिल जाती है किसी दूर रहने वाले व्यक्ति की बातें सुनी जा सकती है हमारी छटी इन्द्री जितनी अधिक विकसित होती है उसका ज्ञान उतना अधिक बढ़ता जाता है.
दूसरों से लेने के साथ साथ देना भी जरुरी होता है
ज्यादा समय का अहंकार इंसान का विनाश कर देता है
जब सपने हो अच्छे तो करें ये काम