एक बार फिर स्वतंत्रता दिवस आने वाला है. और इस स्वतंत्रता दिवस पर हम अपनी आजादी के 69 साल पुरे करने वाले है. और मेरे साथ वे सभी लोग भी अपनी इस ऊपरी आजादी को मानाने में लग जायेंगे. जी हाँ अगस्त की शुरुआत होते ही लोगो में देशभक्ति की भावना जाग जाती है. और 15 अगस्त आते आते ये भावना अपनी चरम सीमा पर होती है. पर क्या यह सच में देशभक्ति की भावना है. क्या हम सच मुच आजाद है. अगर सोचा जाये तो आप जान जायेंगे की आप आज भी गुलामी की जंजीरो में जकड़े हुए है. ऊपरी मन से खुद को आजाद मानने में लगे हुए है हम सब. अब मैं दुसरो का क्या कहु मैं खुद इस भ्रम में हूँ की मैं आजाद हूँ. अगर मैं सोचता हूँ की मैं कही भी जा सकता हूँ, कुछ भी कर सकता हूँ, किसी बात पर अपने विचार खुलकर रख सकता हूँ तो मैं आजाद हूँ. अरे भाई अगर ये आजादी है तो हम सब आजाद है.
पर हम बात कर रहे है हमारी देश और समाज के प्रति जिम्मेदारियों की. और चलिए मान लेते है की हमें दुसरो से क्या हम खुद तो आजाद है. तो जरा गोर फरमाइए अपनी अबतक की गुजरी हुई जिंदगी पर, जबसे मनुष्य संसार में आता है वो न चाहते हुए भी आजाद नहीं हो पता.. उदहारण के लिए बच्चा पैदा होते से ही एक बात सीखता है. की जो बड़े उससे कहेंगे उसे वो बाते माननी होगी. भले ही बड़े कितने ही गलत क्यों न हो. और अगर बात नहीं मानी तो तुम बुरे बच्चे हो, तुम गंदे बच्चे हो ब्लॉ ब्लॉ...और हम तो ठहरे बच्चे अपने आप को अच्छा साबित करने के लिए बात मान भी लेते है. और क्यों न माने भाई साख का सवाल है. और इस प्रकार जन्म होता है पहली गुलामी का वो है लोगो के अनुसार अपने आप को ढालना. फिर जैसे जैसे बड़े होते है स्कूल में सिखाया जाता है मस्ती नहीं करना, शरारत नहीं करना वघेरा वघेरा...नहीं तो मार पड़ेगी.
और हम भी अपने शरारतो को मार के डर से छोड़ देते है. और यह जन्म होता है दूसरी गुलामी का और वो है डर की गुलामी. फिर युवावस्था आते आते हम कई गुलामियों का शिकार होते है. और इनमे सबसे बड़ी गुलामी युवावस्था का प्यार में अँधा होना. अरे भाई गलत मत समझिएगा. दरअसल व्यक्ति प्यार में पड़ता है तो वह अँधा हो जाता है इसका मतलब यह नहीं की उसे दिखाई देना बंद हो जाता है, अर्थ है की प्यार में पड़ा व्यक्ति भूल जाता है की क्या सही है और क्या गलत. बस उसपर प्यार को पाने की धुन सवार हो जाती है, जिस कारण वो झूठ, द्वेष, अहंकार, ईर्ष्या, आदि की गुलामी का शिकार हो जाता है और फंस जाता है इन भयंकर जालो में.
फिर जैसे तैसे वो इन सब से आगे बढ़ता है फिर वह शादी ब्याह के बंधनो मैं उलझकर एक नई गुलामी का शिकार होता है वो है जिम्मेदारियों की गुलामी का. जिम्मेदारियों का मतलब है अपने परिवार की जरुरतो में लगे रह जाना. अब इस गुलामी से होते हुए बच्चो की पढ़ाई, उनकी जरूरते, उनकी शादी के बाद, जब मनुष्य का आखरी समय आता है तो वह सोचता है अब तो भईया भगवान का गुणगान करलु, ताकि हमें मोक्ष मिले.
और फिर घिर जाता है एक नई गुलामी में और वो है लालसा या लोभ. और ऐसे पूरा जीवन ख़त्म हो जाता है. तो आप ही बताइये की कैसे व्यक्ति अपने निजी जीवन में अपने आप को आजाद कह सकता है. और जब वो खुद आजाद नहीं है. तो फिर असल मांयने में समाज और देश के लिए कैसे आजादी का सन्देश दे पाएंगे. तो कुलमिलाकर मनुष्य है अपनी मानसिकता का गुलाम अगर वह इसपर आजादी पा ले तो असल में वह आजाद कहलायेगा.....
रोहित त्रिपाठी