प्रकृति का हर काम व्यवस्थित और स्वाचालित होता है. प्रकृति के किसी भी काम में कोई दोष नहीं होता है. प्रकति की रचना ऐसी ही है की वो दुनिया के हर प्राणी के साथ सामंजस्य बना कर चलाती है. मानव द्वारा की गई गलतियां ही पर्यावरण में वैवधान पैदा करती है. भूकंप, बाढ़ या फिर कोई भी प्राकर्तिक आपदा सदैव मानवीय भूलों के कारण ही आती है.
दुनिया के वर्तमान परिवेश में पर्यावरण पर संकट गहराता जा रह है. समय- समय पर पर्यावरण को बचाने के लिए बहुत से उपायों की बात की जाती है पर ऐसा नहीं होपाटा है. वर्तमान परिवेश में पर्यावरण की रक्ष के लिए सबसे अच्छा तरीका यही है कि मिल-जुल कर प्रयत्न किये जाएं. इस तरह से जान भगीदारी भी बढ़ेगी तथा इन कामों को तेजी से किया जा सकेगा.
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी कई बार जन भागीदारी की बात हो चुकी है. कई देशों में पर्यावरण के कामों में जन भागीदारी से बेहतर परिणाम देखे जा चुके हैं. पर्यावरण को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तथा स्थानीय स्तर पर भी कई कानून बन चुके हैं. फिर भी प्रदूषण पर प्रभावी नियंत्रण नहीं हो पाता, पर्यावरण का संरक्षण तो दूर उसका स्तर सुरक्षित तक नहीं रह पाता है.
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