माल्या, पीएनबी, रोटोमैक जैसे घोटालों ने बैंकों की हालत खराब कर दी है। भारतीय बैंकों पर सितंबर 2017 तक नॉन परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) या डूबत खाता 8.29 लाख करोड़ रुपए पहुंच गया है। यानी यह बैंकों द्वारा बांटे गए कर्ज का वो पैसा है जिसकी रिकवरी की संभावना नहीं है। आसान भाषा में समझें तो यह इतना पैसा है कि देश की 133 अरब आबादी से अगर इस पैसे की वसूली की जाए तो हर शख्स को 6,233 रुपए देने होंगे। वहीं, उद्योगों पर 28.92 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। अगर देश के हर व्यक्ति से रकम वसूली जाए तो हर एक को 4195 रुपए देने होंगे।
उद्योगों को बांटे गए कुल कर्ज का 37% हिस्सा
- रिजर्व बैंक के सितंबर 2017 के आंकड़ों के मुताबिक, उद्योगों पर 28.92 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। यह बांटे गए कुल कर्ज का 37 फीसदी हिस्सा है।
- यानी अगर बैंकों ने 100 रुपए का कर्ज बांटा है तो उसमें 37 रुपए उद्योगों को दिया है। उद्योगों को मिले इस 37 रुपए में 19% एनपीए है। मतलब बैंकों के 100 रुपए में से 19 रुपए उद्योगों की वजह से डूबने की कगार पर हैं। अगर एक्चुअल रकम के तौर पर देखें तो इन 19 रुपए का मतलब है 5.58 लाख करोड़ रुपए।
- यह इतनी रकम है कि देश के हर व्यक्ति से वसूली जाए तो हर एक को 4195 रुपए देने होंगे। कुल मिलाकर एक तरफ छोटे ग्राहक कर्ज चुकाकर बैंकों को आमदनी दे रहे हैं वहीं बड़े धन्नासेठ कर्ज दबा कर बैंकों की हालत पतली कर रहे हैं।
8.29 लाख करोड़ रुपए एनपीए यानी...
जितना देश में एनपीए, उतनी दुनिया के 137 देशों की जीडीपी, देश के बच्चों को 25 साल तक मिड-डे मील दिया जा सकता है।
देश के एक तिहाई बजट के बराबर
बजट : 24.42 लाख करोड़ रुपए
यानी.. बजट का 33% खर्च एनपीए से निकल सकता है।
मनरेगा जैसी 15 योजनाएं चल जाएं
मनरेगा बजट : 55 हजार करोड़ रुपए
यानी.. एनपीए की रकम से मनरेगा जैसी 15 योजनाएं चल सकती है।
तीन साल के रक्षा बजट का खर्च
रक्षा बजट : 2.95 लाख करोड़ रुपए
यानी.. एनपीए से देश का तीन साल का रक्षा बजट तैयार हो सकता है।
हेल्थ, एजुकेशन और सामाजिक सुरक्षा के 9 साल के बजट जितना
हेल्थ+एजुकेशन+सामाजिक सुरक्षा बजट : 1.53 लाख करोड़ ( 9 गुना कम)
यानी.. 9 साल हेल्थ, एजुकेशन में अलग से पैसे की जरूरत नहीं होगी।
उज्ज्वला योजना पर पर 172 साल चिंता की जरूरत नहीं होगी
बजट : 4 हजार 800 करोड़ रुपए
यानी.. उज्जवला जैसी 172 योजनाए एनपीए की राशि से तैयार हो सकती हैं।
आम आदमी को दिए लोन की आमदनी से चल रहे बैंक
- ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एस सिसोदिया कहते हैं कि एनपीए में बड़े उद्योगों का हिस्सा करीब 70 फीसदी है। उन्होंने कहा, बैंक तो आम आदमी को दिए लोन की आमदनी से चल रहे हैं।
- "उद्योगों को 4 से 6% की दर पर लोन मिलता है और आम आदमी को 8 से 15% तक की दर पर। उद्योगों को दिए 100 रुपए के कर्ज में 19 रुपए डूब रहे हैं तो आम आदमी के महज 2 रुपए। वो भी बाद में वसूल हो जाते हैं।"
- सबसे ज्यादा होम लोन देने वाले एचडीएफसी हाउसिंग फाइनेंस के महेश शाह बताते हैं कि होम लोन में हमारे यहां एनपीए 0.7% ही है। होम लोन में एनपीए का मतलब यह नहीं कि लोन डूब गया। यदि कोई व्यक्ति किसी परेशानी के कारण एक या दो माह की किश्त नहीं दे पाता तो 90 दिन के लिए उस लोन को एनपीए में रख देते हैं।
- "लोनधारक की माली स्थिति सही होते ही लोन स्वस्थ कैटेगरी में आ जाता है। ऐसे मामले तो महज 0.04% ही होते हैं, जब व्यक्ति लोन चुका ही नहीं पाता। इन हालात में भी बैंक मकान नीलाम कर अपना पैसा वसूल लेता है। जबकि बड़े उद्योगपतियों से रिकवरी बेहद टेढ़ी खीर होती है।"
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