प्रेम: प्रेम जो मनुष्यो में ईश्वर की उपस्थिति को दर्शाता है. प्रेम जो हर मनुष्य की जरूरत है, प्रेम जो व्यक्ति को एक- दूसरे क़े लिए खुद को मिटाने या हद से गुजर जाने का नाम है. हर युग में धर्म की परिभाषा बदल सकती है परन्तु प्रेम की परिभाषा हर युग में समान ही रही है. इस वर्तमान आसक्ति क़े युग में ज़्यादातर युवक युवतिया प्रेम और वासना क़े एहसास को लेकर असमंजस में रहते है. प्रेम दो जिस्मों का नहीं अपितु दो दिलों तथा दो आत्माओं का मिलन है. प्रेम मनुष्य से हो या जानवर से या फिर प्रकृति से, ये कुछ पाने का नहीं, जबरदस्ती हासिल करने का नहीं, बल्कि अपने साथी को बहुमूल्यता का एहसास करवाना है.
मानव विज्ञान क़े अनुसार जब व्यक्ति को प्रेम या वासना का एहसास होने लगता है, तब मस्तिष्क में उपस्थित 'डोपामिन' नामक हार्मोन व्यक्ति क़े रक्त में प्रवेश करता है. डोपामिन हार्मोन को 'आनन्द का रसायन’ भी कहा जाता है क्योंकि यह ‘परम सुख की भावना’पैदा करता है. 'नॉर-एपिनेफ्रिन' नामक रसायन उत्तेजना का कारक है जो प्यार में पड़ने पर आपकी हृदय गति को भी तेज कर देता है. इन्हीं हार्मोनों से व्यक्ति को प्यार में ऊर्जा मिलती है, वह अनिद्रा का शिकार होता है, प्रेमी को देखने या मिलने की अनिवार्य लालसा प्रबल हो जाती है. व्यक्ति के शरीर में डोपामिन एक अत्यन्त महत्वपूर्ण हार्मोन ‘ऑक्सीटोसिन’ के स्राव को भी उत्तेजित करता है, जिसे ‘लाड़ का रसायन’ (स्पर्श) कहा जाता है, यही ऑक्सीटोसिन प्रेम में आलिंगन, शारीरिक स्पर्श, हाथ में हाथ थामे रहना, सटकर सोना, प्रेम से दबाने जैसी निकटता की तमाम घटनाओं को संचालित और नियन्त्रित करता है, इसे ‘निकटता का रसायन’ भी कहते हैं. इसी रसायन क़े कारण प्रेमी-प्रमिका हमेशा एक-दूसरे से जुड़े रहना चाहते हैं, और लगातार बातें करने के बावजूद भी वे ऊबते नहीं है.शरीर में इन हार्मोंस तथा रसायनों का आवश्यक स्तर बना रहने से आपसी सम्बंधों में उष्णता यानी गर्मजोशी कायम रहती है. शरीर में स्वाभाविक रूप से किशोरावस्था, यौवनावस्था या विवाह के तुरन्त पूर्व व बाद में इन रसायनों व हार्मोंस का उच्च स्तर कायम रहता है. प्रेम और वासना के बीच के इस खेल या अंतर को दिमाग से नियंत्रित किया जा सकता है, उम्र ढलते-ढलते इनका स्तर घटने लगता है और धीरे-धीरे वासना समाप्त होने लगती है, लेकिन प्रेम जीवन पर्यंत बना रहता है.
वैलेंटाइन डे की शुरुआत संत वैलेंटाइन द्वारा की गई थी, तीसरी शताब्दी में रोम में सम्राट क्लॉडियस का मानना था कि शादीशुदा पुरुषों में पुरुषार्थ की कमी तथा बुद्धि क्षमता कम हो जाती है. इसके लिए सम्राट क्लॉडियस ने आदेश दिया कि उनके राज्य का कोई भी सैनिक शादी नहीं करेगा. संत वैलेंटाइन ने प्रेम की ऐसी अवहेलना से इंकार कर उनके इस आदेश का विरोध किया तो उन्हें 14 फरवरी 1269 को फांसी पर चढ़ा दिया गया, बस उसी दिन की याद में 14 फरवरी को प्यार के दिवस ' वैलेंटाइन डे' के रूप में मनाया जाता है.
प्रेम और वासना में इस असमंजस क़े फलस्वरूप ज़्यादातर लोगों का प्रेम सफल नहीं हो पाता, क्योकि उसमे आसक्ति की पूर्ति हो चुकी होती है और प्रेमी दूसरे साथी की तरफ आकर्षित हो जाता है. कई बार एक साथी से संबंध होने क़े बावजूद भी दूसरे साथी संग संबंधो की कामना करना अशुद्ध प्रेम(इमप्योर लव) को दर्शाता है.
शुद्ध प्रेम को परिभाषित करते हुए सिद्ध प्रेमियों ने कहा है कि-" सच्चा प्रेम वह है जो कभी घटे नहीं, कभी बड़े नहीं. जीवन पर्यन्त बहती हुई नदी की तरह बहता रहे जिसमे प्रेमी-प्रेमिका डूबे रहे. जिसमे अपना अस्तित्व तक का ख्याल न रहे और सिर्फ और सिर्फ अपने दिल में स्थित प्रेम और अपने प्रेमी का एहसास रहे."
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