राहुल गांधी के लिए ये साल दो मायनों से रहा बेहद खास

राहुल गांधी के लिए ये साल दो मायनों से रहा बेहद खास
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इस साल हुए गुजरात चुनाव राहुल गांधी के लिए दो मायनों में बेहद यादगार रहेगा. पहला तो यह कि वह कांग्रेस के अध्यक्ष बने है वहीँ दूसरा ये की सियासत में उन्हें मोदी के खिलाफ एक मजबूत विपक्षी नेता के तौर पर उभार दिया है. अब देखना ये है राहुल नए साल में इन दोनों मायनों में कितने खरे उतरते है.वैसे तो यह साल उनके जीवन में कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी लेकर आया है और उन जिम्मेदारी को कितना निभा पाते है ये देखना ही बड़ा दिलचस्प होगा. 

वे सक्रिय राजनीति में आने के बाद काफी जोर-आजमाइश की. लेकिन उनकी पार्टी को कई राज्यों में हार का मुंह देखना पड़ा. इस दौर बीजेपी की ओर से कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया गया था.साथ ही उनपर सोशल मीडिया में नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाए जाने लगे थे और लोगों ने जमकर उनका मजाक भी उड़ाया.

खैर, गुजरात चुनाव उनके लिए 'संजीवनी बूटी' साबित हुई और निरस हो चुके उनके राजनीतिक कैरियर में नया रंग और उत्साह भर दिया. उन्होंने पिछले चुनावों के उलट गुजरात में रहकर न सिर्फ लगातार प्रचार किया बल्कि लोगों से मिलते रहे और जनता का समर्थन हासिल करने के लिए वो सब कुछ किया जो एक मंझे हुए राजनेता करते हैं.हालांकि राहुल के रूप में विपक्षी नेता की जो छवि अभी बनती दिख रही है, उसे बनाए रखने के लिए उन्हें अभी काफी मेहनत करनी होगी.

राहुल गांधी को यह याद रखना होगा कि जिस पार्टी के वह मुखिया बने हैं, उसकी छवि अभी देश में अच्छी नहीं है. हर राज्य में उसे लगातार हार मिल रही है. वहीं नरेंद्र मोदी और अमित शाह के रूप में भाजपा का शीर्ष नेतृत्व लगातार 'कांग्रेस मुक्त' भारत की बात कर रहा है, अभी के जो हालात है उसके आधार पर वह अपने मिशन में कामयाब होता दिख भी रहा है. इस समय महज 4 राज्यों में ही कांग्रेस का शासन है जबकि 1991 में सिर्फ 4 राज्यों में शासन करने वाली भाजपा इस समय 19 राज्यों में सत्ता संभाले हुए हैं.

कांग्रेस के नए अध्यक्ष राहुल गांधी के सामने ढेरों चुनौतियां है. गुजरात में कांग्रेस के प्रदर्शन को अच्छा समझा जा सकता है, लेकिन यह भी नहीं भूलना चाहिए कि वहां पर भाजपा 22 सालों से शासन में है और उसके खिलाफ सत्ता विरोधी लहर भी थी, बावजूद इसके वह सत्ता बचाने में कामयाब हो गई. राहुल को पार्टी मुख्यालय में पूर्ण बदलाव लाना ही होगा बल्कि राज्यों में अपनी पार्टी को मजबूत करना होगा. साथ ही स्थानीय स्तर पर निराश और हताश हो चुके अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरना होगा. उन्होंने कुछ साल पहले पार्टी की मजबूत बनाने के लिए स्थानीय स्तर जो प्रयास शुरू किए थे, उसे फिर से अमल में लाना होगा.

कांग्रेस को अपने कट्टर प्रतिद्धंद्वी पार्टी भाजपा से यह सबक लेना चाहिए कि वह पश्चिम बंगाल, केरल, ओडिशा और तमिलनाडु जैसे उन राज्यों में अपनी पकड़ बनाने में जुटा है जहां उसका कोई जनाधार नहीं है. इसके उलट उनकी पार्टी ही ऐसी पार्टी है जिसका कभी देश के हर राज्य में जनाधार था. अब इसे फिर से संजोना राहुल की सबसे बड़ी चुनौती होगी.  

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