जब माँ गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुई तो उस दिन ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि थी, तभी से इस तिथि को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है. पुराणों में वर्णित अर्थानुसार जिस दिन माँ गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई उस दिन एक बहुत ही अनूठा और भाग्यशाली मुहूर्त था.
उस दिन ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथी और वार बुधवार था, हस्त नक्षत्र, व्यतिपात योग, गर योग, आनंद योग, कन्या राशि में चंद्रमा और वृषभ राशि में सूर्य विराजमान थे, इस प्रकार दस शुभ योग उस दिन बन रहे थे. इसलिए इन सभी दस शुभ योगों के प्रभाव से गंगा दशहरा के पर्व में जो भी व्यक्ति गंगा में स्नान करता है उसके जीवन के दस प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं.
इन दस पापों में तीन पाप कायिक जैसे - बिना आज्ञा या जबरन किसी की वस्तु लेना,हिंसा,पराई स्त्री के साथ समागम, चार पाप वाचिक जैसे - कटुवचन का प्रयोग,असत्य वचन बोलना,किसी की शिकायत करना,असंबद्ध प्रलाप और तीन पाप मानसिक जैसे - दूसरें की संपत्ति हड़पना या हड़पने की इच्छा,दूसरें को हानि पहुँचाना या ऐसे इच्छा रखना,व्यर्थ बातो पर परिचर्चा आदि होते हैं, इन सभी से व्यक्ति को मुक्ति मिलती है.
जिस भी व्यक्ति के द्वारा इस तरह के पाप किए गए है और यदि वो अपने किए गए पाप का पश्चाताप करना चाहता है या इससे मुक्ति पाना चाहता है तो गंगा दशहरा के दिन सच्चे मन से मां गंगा में डूबकी अवश्य लगानी चाहिए.आप चाहे तो स्वच्छ जल में थोड़ा गंगा जल मिलाकर मां गंगा का स्मरण कर उससे भी स्नान कर सकते हैं.
गंगा दशहरा 2018- क्यों मनाया जाता है गंगा दशहरा का त्यौहार
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