नई दिल्ली : जल संकट देश की स्थाई समस्या बनता जा रहा है और खबरें इसके और भी भयावह होने की ओर इशारा कर रही है. हिमालय से निकलने वाली गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी बड़ी नदियों की जलधाराएं और ऐसी ही अन्य 60 प्रतिशत जलधाराएं सूखने की कगार पर हैं, कभी सदा बहने वाली ये जलराशिया आज के हालात में सिर्फ बरसाती मौसम में ही अपने अस्तित्व में आती है. नीति आयोग के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा जल-संरक्षण के लिए तैयार की गई एक रिपोर्ट में किये गए खुलासों के मुताबिक हिमालय से निकलने वाली ऐसी धाराओं की कुल संख्या पचास लाख से भी अधिक हैं, जिनमे से भी 30 लाख केवल भारतीय हिमालय क्षेत्र से आती है.
रिपोर्ट के अनुसार क्योंकि हम हिमालय में नदियों को निचोड़ने लगे हैं, इन जलधाराओं के सिकुड़ने के कारणों में जलवायु परिवर्तन के कारण घटते हिमखंड, पानी की बढ़ती मांग, पेड़ कटने की वजह से पहाड़ी भूमि में हो रहे बदलाव, धरती की अंदरूनी प्लेट्स का खिसकना और जलविद्युत परियोजनाओं के लिए हिमालय में मौजूद नदियों और जलधाराओं का दोहन करना प्रमुख हैं.
अकेले उत्तराखंड में गंगा की विभिन्न धाराओं पर एक लाख 30 हजार करोड़ रुपये की जलविद्युत परियोजनाएं प्रस्तावित हैं. यदि इन धाराओं के अस्तित्व को पुनर्जीवित करने के ठोस उपाय नहीं किए गए तो गंगा और ब्रह्मपुत्र ही नहीं हिमालय से निकलने वाली अनेक नदियों का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा.
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